1. तुम बिन जाएँ कहाँ --- ?
मेरे वैसे तो ररश्तेदार हैं अनगिनत,
किसी से ररश्ता है ही नहीीं पर |
जी हााँ ! नातेदार हैं अनेिानेि,
नाता तो है ही नहीीं किसी से |
पहचानवालों िी है सींख्या भारी,
पर पहचान है नहीीं किसी से |
ममत्र-मींड़ली है ज़रूर बड़ी, पर
किसीिी है नहीीं ममत्रता सच्ची |
देखिर मुस्िु राने, मसर हहलानेवाले हैं िई,
िुज़रते हैं मोच िे िारण िरदन में यों ही |
िु छ ऐसे हैं जो चाहते जी से मुझे
जान-से बढ़िर हाँ मै उनिे मलए |
बबलिु ल चाहती हाँ नही मैं उन्हें
द्वार सारे उनिे मलए हैं सदा बन्द |
िोई वातायान खुला नहीीं िहीीं-िभी
छज्जे पर भी है जाली-िााँच िा आवरण |
आिमन िे मलए भी, लक्ष्मी मााँ िे
खुलता तो, सावधानी सहहत क्षण भर द्वार |
चौखट पर न फल न हल्दी-अक्षत ्,
दोनों ओर सजे रहते नाफ़तमलन बॉल |
दरवाज़े पर सदा महिती रहती है
हहट-स्रे िी सुिींध, िले में खराश |
कफर भी न जाने आते िहााँ से वे जीव ---
िभी हदखाई देते रसोई में बरतनों िे बीच |
2. कफर िभी हदखते पजा घर में भिवान िे पीछे
िभी छज्जे में तो और िभी और िहीीं |
मुझसे इतना क्या लिाव इतना अपार प्यार .. ?
ताि िाली-िोल आाँखों से सरर से छछप जाते |
िाड़ी-चालि माहहर है उन्हें पिड़ता फें ि
आता अछत दर, कफर भी उनिा पीछा रहता बना |
िभी वेिु अम क्लीनर से फाँ सािर छोड़
आता िहीीं िड़े में उन्हें रहने िे मलए |
मैं पजा क्या िरती ? ! लिा रहता उन्हीीं िा ड़र,
िब वे हदखाई दे िहीीं .. ? हे ईश्वर िृ पा िर |
सींसार इतना बड़ा है, ज़मीन इतनी बड़ी है,
वे क्यों आ जाते मेरे आवास ? न ममला उत्तर |
हे मेरे शुभ-गचन्ति ! आप भी मााँिे दुआ मेरे मलए,
ताकि मैं सााँस लाँ आराम से बािी जीवन-िाल !
अब बताती हाँ वह जीव है – जानी दुश्मन छिपकलियाँ,
मेरी दृष्टट में बसा रहता सदा उन्हीीं िा रूप |
मानो वे मुझसे िहते - िहतीीं
तुम बबन जाएाँ िहााँ … ?
समझ न आता – क्या िरूाँ ..? क्या िहाँ.. ?