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सूरदास
सूरदास क
े पद
NAME – KISHLAY
CLASS – 10 F
ROLL NO. 44
सूरदास का जीवन पररचय
सूरदास हििंदी साहित्य में भक्ति-काल की सगुण भक्ति-शाखा क
े
मिान कवव िैं। मिाकवव सूरदास जी वात्सल्य रस क
े सम्राट
माने जािे िैं। सूरदास का जन्म 1478 ईस्वी में रुनकिा नामक
गााँव में िुआ। सूरदास क
े जन्मािंध िोने क
े ववषय में मिभेद िैं।
वे आगरा क
े समीप गऊघाट पर रििे थे। विीिं उनकी भेंट श्री
वल्लभाचायय से िुई और वे उनक
े शशष्य बन गए।
अपने जीवन काल में कई ग्रन्थ शलखे, क्जनमें सूरसागर,
साहित्य लिरी, सूर सारावली आहद शाशमल िैं। उनका शलखा
सूरसागर ग्रन्थ सबसे ज़्यादा लोकविय माना जािा िै। सूर ने
वात्सल्य, श्ररिंगार और शािंि रसों को अपनी रचनाओिं में मुख्य
रूप से दशायया िै। उनक
े अनुसार अटल भक्ति िी मोक्ष-िाक्ति
का एक मात्र साधन िै और उन्िोंने भक्ति को ज्ञान से भी बढ़
कर माना िै। उन्िोंने अपने काव्यों में भक्ति-भावना, िेम,
ववयोग, श्ररिंगार इत्याहद को बड़ी िी सजगिा से चचत्रित्रि िकया िै।
पद का सारािंश
सूरदास क
े पद - 1
ऊधौ, िुम िौ अति बड़भागी।
अपरस रिि सनेि िगा िैं, नाहिन मन अनुरागी।
पुरइतन पाि रिि जल भीिर, िा रस देि न दागी।
ज्यौं जल मािाँ िेल की गागरर, बूाँद न िाकौं लागी।
िीति-नदी मैं पाउाँ न बोरयौ, दृक्ष्ट न रूप परागी।
‘सूरदास’ अबला िम भोरी, गुर चााँटी ज्यौं पागी।
भावाथय :- िस्िुि पिंक्तियों में गोवपयााँ उद्धव (श्री कर ष्ण क
े
सखा) से व्यिंग करिे िुए कि रिी िैं िक िुम बड़े भाग्यवान िो,
जो िुम अभी िक कर ष्ण क
े िेम क
े चतकर में निीिं पड़े। गोवपयों
क
े अनुसार उद्धव उस कमल क
े पत्ते क
े सामान िैं, जो िमेशा
जल में रिकर भी उसमें डूबिा निीिं िै और न िी उसक
े दाग-
धब्बों को खुद पर आने देिा िै। गोवपयों ने ििर उद्धव की
िुलना िकसी िेल क
े मटक
े से की िै, जो तनरिंिर जल में रिकर
भी उस जल से खुद को अलग रखिा िै।
सूरदास क
े पद - 2
मन की मन िी मााँझ रिी।
कहिए जाइ कौन पै ऊधौ, नािीिं परि किी।
अवचध अधार आस आवन की, िन मन त्रिबथा सिी।
अब इन जोग साँदेसतन सुतन-सुतन, त्रिबरहितन त्रिबरि दिी।
चािति िुिीिं गुिारर क्जिहििं िैं, उि िैं धार बिी।
‘सूरदास’ अब धीर धरहििं तयौं, मरजादा न लिी।
भावाथय :- गोवपयााँ उद्धव से अपनी पीड़ा बिािे िुए कि रिी िैं
िक श्री कर ष्ण क
े गोक
ु ल छोड़ कर चले जाने क
े उपरािंि, उनक
े
मन में क्स्थि कर ष्ण क
े िति िेम-भावना मन में िी रि गई िै।
वे शसर्
य इसी आशा से अपने िन-मन की पीड़ा को सि रिी थीिं
िक जब कर ष्ण वापस लौटेंगे, िो वे अपने िेम को कर ष्ण क
े
समक्ष व्यति करेंगी और कर ष्ण क
े िेम की भागीदार बनेंगी।
परन्िु जब उन्िें कर ष्ण का योग-सिंदेश शमला, क्जसमे उन्िें पिा
चला िक वे अब लौटकर निीिं आएिंगे, िो इस सिंदेश को सुनकर
गोवपयााँ टूट-सी गईं और उनकी ववरि की व्यथा और बढ़ गई।
सूरदास क
े पद - 3
िमारैं िरर िाररल की लकरी।
मन क्रम बचन निंद-निंदन उर, यि दृढ़ करर पकरी।
जागि सोवि स्वतन हदवस-तनशस, कान्ि-कान्ि जक री।
सुनि जोग लागि िै ऐसौ, ज्यौं करुई ककरी।
सु िौ ब्याचध िमकौ लै आए, देखी सुनी न करी।
यि िौ ‘सूर’ तिनहििं लै सौंपौ, क्जनक
े मन चकरी।
भावाथय :- सूरदास जी क
े इन पदों में गोवपयािं उद्धव से यि
कि रिी िैं िक िमारे हृदय में श्री कर ष्ण क
े िति अटूट िेम िै,
जो िक िकसी योग-सिंदेश द्वारा कम िोने वाला निीिं िै। बक्ल्क
इससे उनका िेम और भी दृढ़ िो जाएगा। गोवपयााँ उद्धव से
कि रिी िैं िक क्जस िरि िाररल (एक िकार का पक्षी) अपने
पिंजों में लकड़ी को बड़ी िी ढरढ़िा से पकड़े रििा िै, उसे किीिं
भी चगरने निीिं देिा, उसी िकार िमने िरर (भगवान श्री कर ष्ण)
को अपने ह्रदय क
े िेम-रूपी पिंजों से बड़ी िी ढरढ़िा से पकड़ा
िुआ िै। िमारे मन में हदन-राि क
े वल िरर िी बसिे िैं।
सूरदास क
े पद - 4
िरर िैं राजनीति पहढ़ आए।
समुझी बाि किि मधुकर क
े , समाचार सब पाए।
इक अति चिुर िुिे पहिलैं िी, अब गुरु ग्रिंथ पढ़ाए।
बढ़ी बुद्चध जानी जो उनकी, जोग-साँदेस पठाए।
ऊधौ भले लोग आगे क
े , पर हिि डोलि धाए।
अब अपनै मन ि
े र पाइिैं, चलि जु िुिे चुराए।
िे तयौं अनीति करैं आपुन, जे और अनीति छ
ु ड़ाए।
राज धरम िौ यिै ‘सूर’, जो िजा न जाहििं सिाए।
भावाथय :- िस्िुि पद में सूरदास जी ने िमें यि बिाने
का ियास िकया िै िक िकस िकार गोवपयााँ श्री कर ष्ण क
े
ववयोग में खुद को हदलासा दे रिी िैं। सूरदास गोवपयों क
े
माध्यम से कि रिे िैं िक श्री कर ष्ण ने राजनीति का पाठ
पढ़ शलया िै। जो िक मधुकर (उद्धव) क
े द्वारा सब
समाचार िाति कर लेिे िैं और उन्िीिं को माध्यम बनाकर
सिंदेश भी भेज देिे िैं।द्धव क्जसे यिााँ भाँवरा किकर दशायया
गया िै, वि िो पिले से िी चालाक िै, परन्िु श्री कर ष्ण क
े
राजनीति का पाठ पढ़ाने से अब वि और भी चिुर िो गया
िै और िमें अपने छल-कपट क
े माध्यम से बड़ी चिुराई क
े
साथ श्री कर ष्ण का योग सिंदेश दे रिा िै।
सूरदास Ke pad
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सूरदास Ke pad

  • 1. सूरदास सूरदास क े पद NAME – KISHLAY CLASS – 10 F ROLL NO. 44
  • 2. सूरदास का जीवन पररचय सूरदास हििंदी साहित्य में भक्ति-काल की सगुण भक्ति-शाखा क े मिान कवव िैं। मिाकवव सूरदास जी वात्सल्य रस क े सम्राट माने जािे िैं। सूरदास का जन्म 1478 ईस्वी में रुनकिा नामक गााँव में िुआ। सूरदास क े जन्मािंध िोने क े ववषय में मिभेद िैं। वे आगरा क े समीप गऊघाट पर रििे थे। विीिं उनकी भेंट श्री वल्लभाचायय से िुई और वे उनक े शशष्य बन गए। अपने जीवन काल में कई ग्रन्थ शलखे, क्जनमें सूरसागर, साहित्य लिरी, सूर सारावली आहद शाशमल िैं। उनका शलखा सूरसागर ग्रन्थ सबसे ज़्यादा लोकविय माना जािा िै। सूर ने वात्सल्य, श्ररिंगार और शािंि रसों को अपनी रचनाओिं में मुख्य रूप से दशायया िै। उनक े अनुसार अटल भक्ति िी मोक्ष-िाक्ति का एक मात्र साधन िै और उन्िोंने भक्ति को ज्ञान से भी बढ़ कर माना िै। उन्िोंने अपने काव्यों में भक्ति-भावना, िेम, ववयोग, श्ररिंगार इत्याहद को बड़ी िी सजगिा से चचत्रित्रि िकया िै।
  • 4. सूरदास क े पद - 1 ऊधौ, िुम िौ अति बड़भागी। अपरस रिि सनेि िगा िैं, नाहिन मन अनुरागी। पुरइतन पाि रिि जल भीिर, िा रस देि न दागी। ज्यौं जल मािाँ िेल की गागरर, बूाँद न िाकौं लागी। िीति-नदी मैं पाउाँ न बोरयौ, दृक्ष्ट न रूप परागी। ‘सूरदास’ अबला िम भोरी, गुर चााँटी ज्यौं पागी। भावाथय :- िस्िुि पिंक्तियों में गोवपयााँ उद्धव (श्री कर ष्ण क े सखा) से व्यिंग करिे िुए कि रिी िैं िक िुम बड़े भाग्यवान िो, जो िुम अभी िक कर ष्ण क े िेम क े चतकर में निीिं पड़े। गोवपयों क े अनुसार उद्धव उस कमल क े पत्ते क े सामान िैं, जो िमेशा जल में रिकर भी उसमें डूबिा निीिं िै और न िी उसक े दाग- धब्बों को खुद पर आने देिा िै। गोवपयों ने ििर उद्धव की िुलना िकसी िेल क े मटक े से की िै, जो तनरिंिर जल में रिकर भी उस जल से खुद को अलग रखिा िै।
  • 5. सूरदास क े पद - 2 मन की मन िी मााँझ रिी। कहिए जाइ कौन पै ऊधौ, नािीिं परि किी। अवचध अधार आस आवन की, िन मन त्रिबथा सिी। अब इन जोग साँदेसतन सुतन-सुतन, त्रिबरहितन त्रिबरि दिी। चािति िुिीिं गुिारर क्जिहििं िैं, उि िैं धार बिी। ‘सूरदास’ अब धीर धरहििं तयौं, मरजादा न लिी। भावाथय :- गोवपयााँ उद्धव से अपनी पीड़ा बिािे िुए कि रिी िैं िक श्री कर ष्ण क े गोक ु ल छोड़ कर चले जाने क े उपरािंि, उनक े मन में क्स्थि कर ष्ण क े िति िेम-भावना मन में िी रि गई िै। वे शसर् य इसी आशा से अपने िन-मन की पीड़ा को सि रिी थीिं िक जब कर ष्ण वापस लौटेंगे, िो वे अपने िेम को कर ष्ण क े समक्ष व्यति करेंगी और कर ष्ण क े िेम की भागीदार बनेंगी। परन्िु जब उन्िें कर ष्ण का योग-सिंदेश शमला, क्जसमे उन्िें पिा चला िक वे अब लौटकर निीिं आएिंगे, िो इस सिंदेश को सुनकर गोवपयााँ टूट-सी गईं और उनकी ववरि की व्यथा और बढ़ गई।
  • 6. सूरदास क े पद - 3 िमारैं िरर िाररल की लकरी। मन क्रम बचन निंद-निंदन उर, यि दृढ़ करर पकरी। जागि सोवि स्वतन हदवस-तनशस, कान्ि-कान्ि जक री। सुनि जोग लागि िै ऐसौ, ज्यौं करुई ककरी। सु िौ ब्याचध िमकौ लै आए, देखी सुनी न करी। यि िौ ‘सूर’ तिनहििं लै सौंपौ, क्जनक े मन चकरी। भावाथय :- सूरदास जी क े इन पदों में गोवपयािं उद्धव से यि कि रिी िैं िक िमारे हृदय में श्री कर ष्ण क े िति अटूट िेम िै, जो िक िकसी योग-सिंदेश द्वारा कम िोने वाला निीिं िै। बक्ल्क इससे उनका िेम और भी दृढ़ िो जाएगा। गोवपयााँ उद्धव से कि रिी िैं िक क्जस िरि िाररल (एक िकार का पक्षी) अपने पिंजों में लकड़ी को बड़ी िी ढरढ़िा से पकड़े रििा िै, उसे किीिं भी चगरने निीिं देिा, उसी िकार िमने िरर (भगवान श्री कर ष्ण) को अपने ह्रदय क े िेम-रूपी पिंजों से बड़ी िी ढरढ़िा से पकड़ा िुआ िै। िमारे मन में हदन-राि क े वल िरर िी बसिे िैं।
  • 7. सूरदास क े पद - 4 िरर िैं राजनीति पहढ़ आए। समुझी बाि किि मधुकर क े , समाचार सब पाए। इक अति चिुर िुिे पहिलैं िी, अब गुरु ग्रिंथ पढ़ाए। बढ़ी बुद्चध जानी जो उनकी, जोग-साँदेस पठाए। ऊधौ भले लोग आगे क े , पर हिि डोलि धाए। अब अपनै मन ि े र पाइिैं, चलि जु िुिे चुराए। िे तयौं अनीति करैं आपुन, जे और अनीति छ ु ड़ाए। राज धरम िौ यिै ‘सूर’, जो िजा न जाहििं सिाए। भावाथय :- िस्िुि पद में सूरदास जी ने िमें यि बिाने का ियास िकया िै िक िकस िकार गोवपयााँ श्री कर ष्ण क े ववयोग में खुद को हदलासा दे रिी िैं। सूरदास गोवपयों क े माध्यम से कि रिे िैं िक श्री कर ष्ण ने राजनीति का पाठ पढ़ शलया िै। जो िक मधुकर (उद्धव) क े द्वारा सब समाचार िाति कर लेिे िैं और उन्िीिं को माध्यम बनाकर सिंदेश भी भेज देिे िैं।द्धव क्जसे यिााँ भाँवरा किकर दशायया गया िै, वि िो पिले से िी चालाक िै, परन्िु श्री कर ष्ण क े राजनीति का पाठ पढ़ाने से अब वि और भी चिुर िो गया िै और िमें अपने छल-कपट क े माध्यम से बड़ी चिुराई क े साथ श्री कर ष्ण का योग सिंदेश दे रिा िै।