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दिलद़िगार एक क
ँ टीले पेड़ क
े नीचे िामन चाक दकये बैठा हुआ खून क
े आँसू बहा रहा था। वह सौन्दयय की
िेवी यानी मलका दिल़िरेब का सच्चा और जान िेने वाला प्रेमी था। उन प्रेदमय ों में नहीों, ज इत्र-फ
ु लेल में
बसकर और शानिार कपड़ ों से सजकर आदशक क
े वेश में माशूद़ियत का िम भरते हैं। बल्कि उन सीधे-
सािे भ ले-भाले द़ििाइय ों में ज जोंगल और पहाड़ ों से सर टकराते हैं और ़िररयाि मचाते दफरते हैं।
दिल़िरेब ने उससे कहा था दक अगर तू मेरा सच्चा प्रेमी है, त जा और िुदनया की सबसे अनम ल चीज़
लेकर मेरे िरबार में आ तब मैं तुझे अपनी गुलामी में ़िबूल कर
ँ गी। अगर तुझे वह चीज़ न दमले त
ख़बरिार इधर रुख़ न करना, वनाय सूली पर ल्कखोंचवा िूँगी। दिलद़िगार क अपनी भावनाओों क
े प्रिशयन का,
दशकवे-दशकायत का, प्रेदमका क
े सौन्दयय-िशयन का तदनक भी अवसर न दिया गया। दिल़िरेब ने ज् ों ही
यह ़ि
ै सला सुनाया, उसक
े च बिार ों ने ग़रीब दिलद़िगार क धक्क
े िेकर बाहर दनकाल दिया। और आज
तीन दिन से यह आ़ित का मारा आिमी उसी क
ँ टीले पेड़ क
े नीचे उसी भयानक मैिान में बैठा हुआ स च
रहा है दक क्या कर
ँ । िुदनया की सबसे अनम ल चीज़ मुझक दमलेगी? नामुमदकन! और वह है क्या? ़िार
ँ
का ख़जाना? आबे हयात? खुसर का ताज? जामे-जम? तख्तेताऊस? परवेज़ की िौलत? नहीों, यह चीज़ें
हरदगज़ नहीों। िुदनया में ज़रर इनसे भी महँगी, इनसे भी अनम ल चीज़ें मौजूि हैं मगर वह क्या हैं। कहाँ हैं?
क
ै से दमलेंगी? या खुिा, मेरी मुल्किल क्य ोंकर आसान ह गी?
दिलद़िगार इन्ीों ख़याल ों में चक्कर खा रहा था और अक़्ल क
ु छ काम न करती थी। मुनीर शामी क हादतम-
सा मििगार दमल गया। ऐ काश क ई मेरा भी मििगार ह जाता, ऐ काश मुझे भी उस चीज़ का ज िुदनया
की सबसे बेश़िीमत चीज़ है, नाम बतला दिया जाता! बला से वह चीज़ हाथ न आती मगर मुझे इतना त
मालूम ह जाता दक वह दकस द़िस्म की चीज़ है। मैं घड़े बराबर म ती की ख ज में जा सकता हँ। मैं समुन्दर
का गीत, पत्थर का दिल, मौत की आवाज़ और इनसे भी ज्ािा बेदनशान चीज़ ों की तलाश में कमर कस सकता
हँ। मगर िुदनया की सबसे अनम ल चीज़! यह मेरी कल्पना की उड़ान से बहुत ऊपर है।
आसमान पर तारे दनकल आये थे। दिलद़िगार यकायक खुिा का नाम लेकर उठा और एक तरफ क चल
खड़ा हुआ। भूखा-प्यासा, नोंगे बिन, थकन से चूर, वह बरस ों वीरान ों और आबादिय ों की ख़ाक छानता दफरा,
तलवे काँट ों से छलनी ह गये, शरीर में हदियाँ ही हदियाँ दिखायी िेने लगीोंमगर वह चीज़ ज िुदनया की सबसे
बेश-़िीमत चीज़ थी, न दमली और न उसका क
ु छ दनशान दमला।
एक र ज़ वह भूलता-भटकता एक मैिान में जा दनकला, जहाँ हजार ों आिमी ग ल बाँधे खड़े थे। बीच में कई
अमामे और च ग़े वाले िदिय़ल ़िाजी अ़िसरी शान से बैठे हुए आपस में क
ु छ सलाह-मशदवरा कर रहे थे
और इस जमात से ज़रा िू र पर एक सूली खड़ी थी। दिलद़िगार क
ु छ त कमज री की वजह से क
ु छ यहाँ की
क
ै दफयत िेखने क
े इरािे से दठठक गया। क्या िेखता है, दक कई ल ग नोंगी तलवारें दलये, एक ़ि
ै िी क दजसक
े
हाथ-पैर में ज़ोंजीरें थीों, पकड़े चले आ रहे हैं। सूली क
े पास पहुँचकर सब दसपाही रुक गये और ़ि
ै िी की
हथकदिय़ाँ, बेदिय़ाँ सब उतार ली गयीों। इस अभागे आिमी का िामन सैकड़ ों बेगुनाह ों क
े खून क
े छीोंट ों से
रोंगीन था, और उसका दिल नेकी क
े ख़याल और रहम की आवाज़ से ज़रा भी पररदचत न था। उसे काला च र
कहते थे। दसपादहय ों ने उसे सूली क
े तख़्ते पर खड़ा कर दिया, मौत की फाँसी उसकी गियन में िाल िी और
जल्लाि ों ने तख़्ता खीोंचने का इरािा दकया दक वह अभागा मुजररम चीख़कर ब ला-खुिा क
े वास्ते मुझे एक
पल क
े दलए फाँसी से उतार ि तादक अपने दिल की आदख़री आरजू दनकाल लूँ। यह सुनते ही चार ों तरफ
सन्नाटा छा गया। ल ग अचम्भे में आकर ताकने लगे। ़िादजय ों ने एक मरने वाले आिमी की अोंदतम याचना क
रद्द करना उदचत न समझा और बिनसीब पापी काला च र ज़रा िेर क
े दलए फाँसी से उतार दलया गया।
इसी भीड़ में एक खूबसूरत भ ला-भ ला लि़िा एक छड़ी पर सवार ह कर अपने पैर ों पर उछल-उछल ़िजी
घ ड़ा िौड़ा रहा था, और अपनी सािगी की िुदनया में ऐसा मगन था दक जैसे वह इस वक्त सचमुच दकसी
अरबी घ ड़े का शहसवार है। उसका चेहरा उस सच्ची खुशी से कमल की तरह ल्कखला हुआ था ज चन्द दिन ों
क
े दलए बचपन ही में हादसल ह ती है और दजसकी याि हमक मरते िम तक नहीों भूलती। उसका दिल अभी
तक पाप की गिय और धूल से अछ
ू ता था और मासूदमयत उसे अपनी ग ि में ल्कखला रही थी।
बिनसीब काला च र फाँसी से उतरा। हज़ार ों आँखें उस पर गड़ी हुई थीों। वह उस लड़क
े क
े पास आया और
उसे ग ि में उठाकर प्यार करने लगा। उसे इस वक्त वह ज़माना याि आया जब वह खुि ऐसा ही भ ला-भाला,
ऐसा ही खुश-व-खुरयम और िुदनया की गन्ददगय ों से ऐसा ही पाक सा़ि था। माँ ग दिय ों में ल्कखलाती थी, बाप
बलाएँ लेता था और सारा क
ु नबा जान न्य छावर करता था। आह! काले च र क
े दिल पर इस वक़्त बीते हुए
दिन ों की याि का इतना असर हुआ दक उसकी आँख ों से, दजन् ोंने िम त ड़ती हुई लाश ों क तड़पते िेखा और
न झपकीों, आँसू का एक ़ितरा टपक पड़ा। दिलद़िगार ने लपककर उस अनम ल म ती क हाथ में ले दलया
और उसक
े दिल ने कहा-बेशक यह िुदनया की सबसे अनम ल चीज़ है दजस पर तख़्ते ताऊस और जामेजम
और आबे हयात और ज़रे परवेज़ सब न्य छावर हैं।
इस ख़याल से खुश ह ता कामयाबी की उम्मीि में सरमस्त, दिलद़िगार अपनी माशू़िा दिल़िरेब क
े शहर
मीन सवाि क चला। मगर ज् -ज् ों मोंदजलें तय ह ती जाती थीों उसका दिल बैठ जाता था दक कहीों उस चीज़
की, दजसे मैं िुदनया की सबसे बेश़िीमत चीज़ समझता हँ, दिल़िरेब की आँख ों में कद्र न हुई त मैं फाँसी पर
चढा दिया जाऊ
ँ गा और इस िुदनया से नामुराि जाऊ
ँ गा। लेदकन ज ह स ह , अब त दकस्मत-आज़माई है।
आदख़रकार पहाड़ और िररया तय करते शहर मीन सवाि में आ पहुँचा और दिल़िरे ब की ड्य ढी पर जाकर
दवनती की दक थकान से टू टा हुआ दिलद़िगार खुिा क
े ़िज़ल से हुक्म की तामील करक
े आया है, और आपक
े
़ििम चूमना चाहता है। दिल़िरेब ने ़िौरन अपने सामने बुला भेजा और एक सुनहरे परिे की ओट से
़िरमाइश की दक वह अनम ल चीज़ पेश कर । दिलद़िगार ने आशा और भय की एक दवदचत्र मन:ल्कथथदत में
वह बूँि पेश की और उसकी सारी क
ै द़ियत बहुत पुरअसर लफज़ ों में बयान की। दिल़िरेब ने पूरी कहानी
बहुत ग़ौर से सुनी और वह भेंट हाथ में लेकर ज़रा िेर तक ग़ौर करने क
े बाि ब ली-दिलद़िगार, बेशक तूने
िुदनया की एक बेश़िीमत चीज़ िूँढ दनकाली, तेरी दहम्मत और तेरी सूझबूझ की िाि िेती हँ! मगर यह िुदनया
की सबसे बेश़िीमत चीज़ नहीों, इसदलए तू यहाँ से जा और दफर क दशश कर, शायि अब की तेरे हाथ वह
म ती लगे और तेरी द़िस्मत में मेरी गुलामी दलखी ह । जैसा दक मैंने पहले ही बतला दिया था मैं तुझे फाँसी पर
चढवा सकती हँ मगर मैं तेरी जाँबख्शी करती हँ इसदलए दक तुझमें वह गुण मौजूि हैं, ज मैं अपने प्रेमी में
िेखना चाहती हँ और मुझे य़िीन है दक तू जरर कभी-न-कभी कामयाब ह गा।
नाकाम और नामुराि दिलद़िगार इस माशू़िाना इनायत से ज़रा दिलेर ह कर ब ला-ऐ दिल की रानी, बड़ी
मुद्दत क
े बाि तेरी ड्य ढी पर सजिा करना नसीब ह ता है। दफर खुिा जाने ऐसे दिन कब आएँ गे, क्या तू अपने
जान िेने वाले आदश़ि क
े बुरे हाल पर तरस न खाएगी और क्या अपने रप की एक झलक दिखाकर इस
जलते हुए दिलद़िगार क आने वाली सल्कख़्तय ों क
े झेलने की ता़ित न िेगी? तेरी एक मस्त दनगाह क
े नशे से
चूर ह कर मैं वह कर सकता हँ ज आज तक दकसी से न बन पड़ा ह ।
दिल़िरेब आदश़ि की यह चाव-भरी बातें सुनकर गुस्सा ह गयी और हुक्म दिया दक इस िीवाने क खड़े-खड़े
िरबार से दनकाल ि । च बिार ने ़िौरन ग़रीब दिलद़िगार क धक्क
े िेकर यार क
े क
ू चे से बाहर दनकाल
दिया।
क
ु छ िेर तक त दिलद़िगार अपनी दनष्ठु र प्रेदमका की इस कठ रता पर आँसू बहाता रहा, और स चने लगा
दक कहाँ जाऊ
ँ । मुद्दत ों रास्ते नापने और जोंगल ों में भटकने क
े बाि आँसू की यह बूँि दमली थी, अब ऐसी कौन-
सी चीज है दजसकी ़िीमत इस आबिार म ती से ज्ािा ह । हज़रते ल्कखज्र! तुमने दसकन्दर क आबेहयात क
े
क
ु एँ का रास्ता दिखाया था, क्या मेरी बाँह न पकड़ गे? दसकन्दर सारी िुदनया का मादलक था। मैं त एक
बेघरबार मुसाद़िर हँ। तुमने दकतनी ही ि
ू बती दकल्कियाँ दकनारे लगायी हैं, मुझ ग़रीब का बेड़ा भी पार कर ।
ऐ आलीमु़िाम दजबरील! क
ु छ तुम्ही इस नीमजान, िुखी आदश़ि पर तरस खाओ। तुम खुिा क
े एक ख़ास
िरबारी ह , क्या मेरी मुल्किल आसान न कर गे! ग़रज़ यह दक दिलद़िगार ने बहुत ़िररयाि मचायी मगर
उसका हाथ पकिऩे क
े दलए क ई सामने न आया। आदख़र दनराश ह कर वह पागल ों की तरह िुबारा एक
तऱि क चल खड़ा हुआ।
दिलद़िगार ने पूरब से पल्किम तक और उत्तर से िल्किन तक दकतने ही जोंगल ों और वीरान ों की ख़ाक छानी,
कभी बद़ि
य स्तानी च दटय ों पर स या, कभी िरावनी घादटय ों में भटकता दफरा मगर दजस चीज़ की धुन थी वह
न दमली, यहाँ तक दक उसका शरीर हदिय ों का एक िाँचा रह गया।
एक र ज वह शाम क
े वक्त दकसी निी क
े दकनारे खस्ताहाल पड़ा हुआ था। बेखुिी क
े नशे से चौोंका त क्या
िेखता है दक चन्दन की एक दचता बनी हुई है और उस पर एक युवती सुहाग क
े ज ड़े पहने स लह ों दसोंगार
दकये बैठी हुई है। उसकी जाँघ पर उसक
े प्यारे पदत का सर है। हज़ार ों आिमी ग ल बाँधे खड़े हैं और फ
ू ल ों
की बरखा कर रहे हैं। यकायक दचता में से खुि-ब-खुि एक लपट उठी। सती का चेहरा उस वक्त एक पदवत्र
भाव से आल दकत ह रहा था। दचता की पदवत्र लपटें उसक
े गले से दलपट गयीों और िम-क
े -िम में वह फ
ू ल-
सा शरीर राख का िेर ह गया। प्रेदमका ने अपने क प्रेमी पर न्य छावर कर दिया और ि प्रेदमय ों क
े सच्चे,
पदवत्र, अमर प्रेम की अल्किम लीला आँख से ओझल ह गयी। जब सब ल ग अपने घर ों क लौटे त दिलद़िगार
चुपक
े से उठा और अपने चाक-िामन क
ु रते में यह राख का िेर समेट दलया और इस मुट्ठी भर राख क िुदनया
की सबसे अनम ल चीज़ समझता हुआ, सफलता क
े नशे में चूर, यार क
े क
ू चे की तरफ चला। अबकी ज् ों-
ज् ों वह अपनी मोंदजल क
े ़िरीब आता था, उसकी दहम्मतें बढती जाती थीों। क ई उसक
े दिल में बैठा हुआ कह
रहा था-अबकी तेरी जीत है और इस ख़याल ने उसक
े दिल क ज -ज सपने दिखाए उनकी चचाय व्यथय है।
आदख़कार वह शहर मीन सवाि में िादख़ल हुआ और दिल़िरेब की ऊ
ँ ची ड्य ढी पर जाकर ख़बर िी दक
दिलद़िगार सुख़य-र ह कर लौटा है और हुजूर क
े सामने आना चाहता है। दिल़िरेब ने जाँबाज़ आदश़ि क
़िौरन िरबार में बुलाया और उस चीज क
े दलए, ज िुदनया की सबसे बेश़िीमत चीज़ थी, हाथ फ
ै ला दिया।
दिलद़िगार ने दहम्मत करक
े उसकी चाँिी जैसी कलाई क चूम दलया और मुठ्ठी भर राख क उसकी हथेली में
रखकर सारी क
ै द़ियत दिल क दपघला िेने वाले लफ़ज ों में कह सुनायी और सुन्दर प्रेदमका क
े ह ठ ों से अपनी
द़िस्मत का मुबारक ़ि
ै सला सुनने क
े दलए इिज़ार करने लगा। दिल़िरेब ने उस मुठ्ठी भर राख क आँख ों से
लगा दलया और क
ु छ िेर तक दवचार ों क
े सागर में िू बे रहने क
े बाि ब ली-ऐ जान दनछावर करने वाले आदश़ि
दिलद़िगार! बेशक यह राख ज तू लाया है, दजसमें ल हे क स ना कर िेने की दस़ित है, िुदनया की बहुत
बेश़िीमत चीज़ है और मैं सच्चे दिल से तेरी एहसानमन्द हँ दक तूने ऐसी अनम ल भेंट मुझे िी। मगर िुदनया
में इससे भी ज्ािा अनम ल क ई चीज़ है, जा उसे तलाश कर और तब मेरे पास आ। मैं तहेदिल से िुआ करती
हँ दक खुिा तुझे कामयाब करे । यह कहकर वह सुनहरे परिे से बाहर आयी और माशू़िाना अिा से अपने
रप का जलवा दिखाकर दफर नजर ों से ओझल ह गयी। एक दबजली थी दक कौोंधी और दफर बािल ों क
े परिे
में दछप गयी। अभी दिलद़िगार क
े ह श-हवास दठकाने पर न आने पाये थे दक च बिार ने मुलायदमयत से
उसका हाथ पकि़िर यार क
े क
ू चे से उसक दनकाल दिया और दफर तीसरी बार वह प्रेम का पुजारी दनराशा
क
े अथाह समुन्दर में ग ता खाने लगा।
दिलद़िगार का दहयाव छ
ू ट गया। उसे य़िीन ह गया दक मैं िुदनया में इसी तरह नाशाि और नामुराि मर
जाने क
े दलए पैिा दकया गया था और अब इसक
े दसवा और क ई चारा नहीों दक दकसी पहाड़ पर चि़िर नीचे
क
ू ि पड़ूँ, तादक माशू़ि क
े जुल् ों की ़िररयाि करने क
े दलए एक हिी भी बा़िी न रहे। वह िीवाने की तरह
उठा और दगरता-पड़ता एक गगनचुम्बी पहाड़ की च टी पर जा पहुँचा। दकसी और समय वह ऐसे ऊ
ँ चे पहाड़
पर चिऩे का साहस न कर सकता था मगर इस वक़्त जान िेने क
े ज श में उसे वह पहाड़ एक मामूली टेकरी
से ज्ािा ऊ
ँ चा न नजर आया। ़िरीब था दक वह नीचे क
ू ि पड़े दक हरे -हरे कपड़े पहने हुए और हरा अमामा
बाँधे एक बुजुगय एक हाथ में तसबीह और िू सरे हाथ में लाठी दलये बरामि हुए और दहम्मत बढाने वाले स्वर में
ब ले-दिलद़िगार, नािान दिलद़िगार, यह क्या बुज़दिल ों जैसी हरकत है! तू मुहब्बत का िावा करता है और
तुझे इतनी भी खबर नहीों दक मजबूत इरािा मुहब्बत क
े रास्ते की पहली मोंदज़ल है? मिय बन और य ों दहम्मत न
हार। पूरब की तऱि एक िेश है दजसका नाम दहन्द स्तान है, वहाँ जा और तेरी आरजू पूरी ह गी।
यह कहकर हज़रते दख़ज्र ग़ायब ह गये। दिलद़िगार ने शुदिये की नमाज अिा की और ताज़ा हौसले, ताज़ा
ज श और अलौदकक सहायता का सहारा पाकर खुश-खुश पहाड़ से उतरा और दहन्द स्तान की तरफ चल
पड़ा।
मुद्दत ों तक काँट ों से भरे हुए जोंगल ों, आग बरसाने वाले रेदगस्तान ों, कदठन घादटय ों और अलोंघ्य पवयत ों क तय
करने क
े बाि दिलद़िगार दहन्द की पाक सरज़मीन में िाल्कखल हुआ और एक ठण्डे पानी क
े स ते में स़िर की
तकलीफ
ें ध कर थकान क
े मारे निी क
े दकनारे लेट गया। शाम ह ते-ह ते वह एक चदटयल मैिान में पहुँचा
जहाँ बेशुमार अधमरी और बेजान लाशें दबना क़िन क
े पड़ी हुई थीों। चील-कौए और वहशी िररन्दे मरे पड़े
हुए थे और सारा मैिान खून से लाल ह रहा था। यह िरावना दृश्य िेखते ही दिलद़िगार का जी िहल गया।
या खुिा, दकस मुसीबत में जान फ
ँ सी, मरने वाल ों का कराहना, दससकना और एदिय़ाँ रगि़िर जान िेना,
िररन्द ों का हदिय ों क न चना और ग ि क
े ल थड़ ों क लेकर भागना, ऐसा हौलनाक सीन दिलद़िगार ने
कभी न िेखा था। यकायक उसे ख्याल आया, यह लड़ाई का मैिान है और यह लाशें सूरमा दसपादहय ों की हैं।
इतने में ़िरीब से कराहने की आवाज़ आयी। दिलद़िगार उस तऱि दफरा त िेखा दक एक लम्बा-तड़ोंगा
आिमी, दजसका मिायना चेहरा जान दनकालने की कमज़ री से पीला ह गया है, ज़मीन पर सर झुकाये पड़ा
हुआ है। सीने से खून का फौव्वारा जारी है, मगर आबिार तलवार की मूठ पोंजे से अलग नहीोंहुई। दिलद़िगार
ने एक चीथड़ा लेकर घाव क
े मुँह पर रख दिया तादक खून रुक जाए और ब ला-ऐ जवाँमिय, तू कौन है? जवाँमिय
ने यह सुनकर आँखें ख लीोंऔर वीर ों की तरह ब ला-क्या तू नहीोंजानता मैं कौन हँ, क्या तूने आज इस तलवार
की काट नहीों िेखी? मैं अपनी माँ का बेटा और भारत का सपूत हँ। यह कहते-कहते उसकी त्य ररय ों पर बल
पड़ गये। पीला चेहरा गुस्से से लाल ह गया और आबिार शमशीर दफर अपना जौहर दिखाने क
े दलए चमक
उठी। दिलद़िगार समझ गया दक यह इस वक्त मुझे िुश्मन समझ रहा है, नरमी से ब ला-ऐ जवाँमिय, मैं तेरा
िुश्मन नहीों हँ। अपने वतन से दनकला हुआ एक ग़रीब मुसाद़िर हँ। इधर भूलता-भटकता आ दनकला। बराय
मेहरबानी मुझसे यहाँ की क
ु ल क
ै द़ियत बयान कर।
यह सुनते ही घायल दसपाही बहुत मीठे स्वर में ब ला-अगर तू मुसाद़िर है त आ मेरे खून से तर पहलू में बैठ
जा क्य ोंदक यही ि अोंगुल ज़मीन है ज मेरे पास बा़िी रह गयी है और ज दसवाय मौत क
े क ई नहीों छीन
सकता। अ़िस स है दक तू यहाँ ऐसे वक़्त में आया जब हम तेरा आदतथ्य-सत्कार करने क
े य ग्य नहीों। हमारे
बाप-िािा का िेश आज हमारे हाथ से दनकल गया और इस वक्त हम बेवतन हैं। मगर (पहलू बिलकर) हमने
हमलावर िुश्मन क बता दिया दक राजपूत अपने िेश क
े दलए क
ै सी बहािुरी से जान िेता है। यह आस-पास
ज लाशें तू िेख रहा है, यह उन ल ग ों की है, ज इस तलवार क
े घाट उतरे हैं। (मुस्कराकर) और ग या दक मैं
बेवतन हँ, मगर ग़नीमत है दक िुश्मन की ज़मीन पर मर रहा हँ। (सीने क
े घाव से चीथड़ा दनकालकर) क्या
तूने यह मरहम रख दिया? खून दनकलने िे, इसे र कने से क्या ़िायिा? क्या मैं अपने ही िेश में गुलामी करने
क
े दलए दज़न्दा रहँ? नहीों, ऐसी दज़न्दगी से मर जाना अिा। इससे अिी मौत मुमदकन नहीों।
जवाँमिय की आवाज़ मल्किम ह गयी, अोंग िीले पड़ गये, खून इतना ज्ािा बहा दक खुि-ब-खुि बन्द ह गया,
रह-रहकर एकाध बूँि टपक पड़ता था। आदख़रकार सारा शरीर बेिम ह गया, दिल की हरकत बन्द ह गयी
और आँखें मुँि गयीों। दिलद़िगार ने समझा अब काम तमाम ह गया दक मरने वाले ने धीमे से कहा-भारतमाता
की जय! और उसक
े सीने से खून का आदख़री ़ितरा दनकल पड़ा। एक सच्चे िेशप्रेमी और िेशभक्त ने
िेशभल्कक्त का ह़ि अिा कर दिया। दिलद़िगार पर इस दृश्य का बहुत गहरा असर पड़ा और उसक
े दिल ने
कहा, बेशक िुदनया में खून क
े इस ़ितरे से ज़्यािा अनम ल चीज क ई नहीोंह सकती। उसने ़िौरन उस खून
की बूँि क दजसक
े आगे यमन का लाल भी हेच है, हाथ में ले दलया और इस दिलेर राजपूत की बहािुरी पर
हैरत करता हुआ अपने वतन की तऱि रवाना हुआ और सल्कख्तयाँ झेलता आदख़रकार बहुत दिन ों क
े बाि रप
की रानी मलका दिल़िरेब की ड्य ढी पर जा पहुँचा और पैग़ाम दिया दक दिलद़िगार सुख़यर और कामयाब
ह कर लौटा है और िरबार में हादज़र ह ना चाहता है। दिल़िरेब ने उसे ़िौरन हादज़र ह ने का हुक्म दिया।
खुि हस्बे मामूल सुनहरे परिे की ओट में बैठी और ब ली-दिलद़िगार, अबकी तू बहुत दिन ों क
े बाि वापस
आया है। ला, िुदनया की सबसे बेश़िीमत चीज कहाँ है?
दिलद़िगार ने मेंहिी-रची हथेदलय ों क चूमते हुए खून का वह कतरा उस पर रख दिया और उसकी पूरी
क
ै द़ियत पुरज श लहजे में कह सुनायी। वह खाम श भी न ह ने पाया था दक यकायक वह सुनहरा परिा हट
गया और दिलद़िगार क
े सामने हुस्न का एक िरबार सजा हुआ नज़र आया दजसकी एक-एक नाज़नीन जुलेखा
से बि़िर थी। दिल़िरेब बड़ी शान क
े साथ सुनहरी मसनि पर सुश दभत ह रही थी। दिलद़िगार हुस्न का
यह दतलस्म िेखकर अचम्भे में पड़ गया और दचत्रदलल्कखत-सा खड़ा रहा दक दिल़िरेब मसनि से उठी और
कई ़ििम आगे बि़िर उससे दलपट गयी। गानेवादलय ों ने खुशी क
े गाने शुर दकये, िरबाररय ों ने दिलद़िगार
क नज़रें भेंट कीों और चाँि-सूरज क बड़ी इज्जत क
े साथ मसनि पर बैठा दिया। जब वह लुभावना गीत बन्द
हुआ त दिल़िरेब खड़ी ह गयी और हाथ ज ि़िर दिलद़िगार से ब ली-ऐ जाँदनसार आदश़ि दिलद़िगार!
मेरी िुआएँ बर आयीों और खुिा ने मेरी सुन ली और तुझे कामयाब व सुख़यर दकया। आज से तू मेरा मादलक
है और मैं तेरी लौोंिी!
यह कहकर उसने एक रत्नजदटत मोंजूषा मँगायी और उसमें से एक तख्ती दनकाली दजस पर सुनहरे अक्षर ों में
दलखा हुआ था-
‘खून का वह आदख़री ़ितरा ज वतन की दह़िाजत में दगरे िुदनया की सबसे अनम ल चीज़ है।’

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दुनियाकासबसेअनमोल_रत्नप्रेमचंद.

  • 1. दिलद़िगार एक क ँ टीले पेड़ क े नीचे िामन चाक दकये बैठा हुआ खून क े आँसू बहा रहा था। वह सौन्दयय की िेवी यानी मलका दिल़िरेब का सच्चा और जान िेने वाला प्रेमी था। उन प्रेदमय ों में नहीों, ज इत्र-फ ु लेल में बसकर और शानिार कपड़ ों से सजकर आदशक क े वेश में माशूद़ियत का िम भरते हैं। बल्कि उन सीधे- सािे भ ले-भाले द़ििाइय ों में ज जोंगल और पहाड़ ों से सर टकराते हैं और ़िररयाि मचाते दफरते हैं। दिल़िरेब ने उससे कहा था दक अगर तू मेरा सच्चा प्रेमी है, त जा और िुदनया की सबसे अनम ल चीज़ लेकर मेरे िरबार में आ तब मैं तुझे अपनी गुलामी में ़िबूल कर ँ गी। अगर तुझे वह चीज़ न दमले त ख़बरिार इधर रुख़ न करना, वनाय सूली पर ल्कखोंचवा िूँगी। दिलद़िगार क अपनी भावनाओों क े प्रिशयन का, दशकवे-दशकायत का, प्रेदमका क े सौन्दयय-िशयन का तदनक भी अवसर न दिया गया। दिल़िरेब ने ज् ों ही यह ़ि ै सला सुनाया, उसक े च बिार ों ने ग़रीब दिलद़िगार क धक्क े िेकर बाहर दनकाल दिया। और आज तीन दिन से यह आ़ित का मारा आिमी उसी क ँ टीले पेड़ क े नीचे उसी भयानक मैिान में बैठा हुआ स च रहा है दक क्या कर ँ । िुदनया की सबसे अनम ल चीज़ मुझक दमलेगी? नामुमदकन! और वह है क्या? ़िार ँ का ख़जाना? आबे हयात? खुसर का ताज? जामे-जम? तख्तेताऊस? परवेज़ की िौलत? नहीों, यह चीज़ें हरदगज़ नहीों। िुदनया में ज़रर इनसे भी महँगी, इनसे भी अनम ल चीज़ें मौजूि हैं मगर वह क्या हैं। कहाँ हैं? क ै से दमलेंगी? या खुिा, मेरी मुल्किल क्य ोंकर आसान ह गी? दिलद़िगार इन्ीों ख़याल ों में चक्कर खा रहा था और अक़्ल क ु छ काम न करती थी। मुनीर शामी क हादतम- सा मििगार दमल गया। ऐ काश क ई मेरा भी मििगार ह जाता, ऐ काश मुझे भी उस चीज़ का ज िुदनया की सबसे बेश़िीमत चीज़ है, नाम बतला दिया जाता! बला से वह चीज़ हाथ न आती मगर मुझे इतना त मालूम ह जाता दक वह दकस द़िस्म की चीज़ है। मैं घड़े बराबर म ती की ख ज में जा सकता हँ। मैं समुन्दर का गीत, पत्थर का दिल, मौत की आवाज़ और इनसे भी ज्ािा बेदनशान चीज़ ों की तलाश में कमर कस सकता हँ। मगर िुदनया की सबसे अनम ल चीज़! यह मेरी कल्पना की उड़ान से बहुत ऊपर है। आसमान पर तारे दनकल आये थे। दिलद़िगार यकायक खुिा का नाम लेकर उठा और एक तरफ क चल खड़ा हुआ। भूखा-प्यासा, नोंगे बिन, थकन से चूर, वह बरस ों वीरान ों और आबादिय ों की ख़ाक छानता दफरा, तलवे काँट ों से छलनी ह गये, शरीर में हदियाँ ही हदियाँ दिखायी िेने लगीोंमगर वह चीज़ ज िुदनया की सबसे बेश-़िीमत चीज़ थी, न दमली और न उसका क ु छ दनशान दमला। एक र ज़ वह भूलता-भटकता एक मैिान में जा दनकला, जहाँ हजार ों आिमी ग ल बाँधे खड़े थे। बीच में कई अमामे और च ग़े वाले िदिय़ल ़िाजी अ़िसरी शान से बैठे हुए आपस में क ु छ सलाह-मशदवरा कर रहे थे और इस जमात से ज़रा िू र पर एक सूली खड़ी थी। दिलद़िगार क ु छ त कमज री की वजह से क ु छ यहाँ की क ै दफयत िेखने क े इरािे से दठठक गया। क्या िेखता है, दक कई ल ग नोंगी तलवारें दलये, एक ़ि ै िी क दजसक े हाथ-पैर में ज़ोंजीरें थीों, पकड़े चले आ रहे हैं। सूली क े पास पहुँचकर सब दसपाही रुक गये और ़ि ै िी की हथकदिय़ाँ, बेदिय़ाँ सब उतार ली गयीों। इस अभागे आिमी का िामन सैकड़ ों बेगुनाह ों क े खून क े छीोंट ों से रोंगीन था, और उसका दिल नेकी क े ख़याल और रहम की आवाज़ से ज़रा भी पररदचत न था। उसे काला च र कहते थे। दसपादहय ों ने उसे सूली क े तख़्ते पर खड़ा कर दिया, मौत की फाँसी उसकी गियन में िाल िी और जल्लाि ों ने तख़्ता खीोंचने का इरािा दकया दक वह अभागा मुजररम चीख़कर ब ला-खुिा क े वास्ते मुझे एक पल क े दलए फाँसी से उतार ि तादक अपने दिल की आदख़री आरजू दनकाल लूँ। यह सुनते ही चार ों तरफ सन्नाटा छा गया। ल ग अचम्भे में आकर ताकने लगे। ़िादजय ों ने एक मरने वाले आिमी की अोंदतम याचना क रद्द करना उदचत न समझा और बिनसीब पापी काला च र ज़रा िेर क े दलए फाँसी से उतार दलया गया।
  • 2. इसी भीड़ में एक खूबसूरत भ ला-भ ला लि़िा एक छड़ी पर सवार ह कर अपने पैर ों पर उछल-उछल ़िजी घ ड़ा िौड़ा रहा था, और अपनी सािगी की िुदनया में ऐसा मगन था दक जैसे वह इस वक्त सचमुच दकसी अरबी घ ड़े का शहसवार है। उसका चेहरा उस सच्ची खुशी से कमल की तरह ल्कखला हुआ था ज चन्द दिन ों क े दलए बचपन ही में हादसल ह ती है और दजसकी याि हमक मरते िम तक नहीों भूलती। उसका दिल अभी तक पाप की गिय और धूल से अछ ू ता था और मासूदमयत उसे अपनी ग ि में ल्कखला रही थी। बिनसीब काला च र फाँसी से उतरा। हज़ार ों आँखें उस पर गड़ी हुई थीों। वह उस लड़क े क े पास आया और उसे ग ि में उठाकर प्यार करने लगा। उसे इस वक्त वह ज़माना याि आया जब वह खुि ऐसा ही भ ला-भाला, ऐसा ही खुश-व-खुरयम और िुदनया की गन्ददगय ों से ऐसा ही पाक सा़ि था। माँ ग दिय ों में ल्कखलाती थी, बाप बलाएँ लेता था और सारा क ु नबा जान न्य छावर करता था। आह! काले च र क े दिल पर इस वक़्त बीते हुए दिन ों की याि का इतना असर हुआ दक उसकी आँख ों से, दजन् ोंने िम त ड़ती हुई लाश ों क तड़पते िेखा और न झपकीों, आँसू का एक ़ितरा टपक पड़ा। दिलद़िगार ने लपककर उस अनम ल म ती क हाथ में ले दलया और उसक े दिल ने कहा-बेशक यह िुदनया की सबसे अनम ल चीज़ है दजस पर तख़्ते ताऊस और जामेजम और आबे हयात और ज़रे परवेज़ सब न्य छावर हैं। इस ख़याल से खुश ह ता कामयाबी की उम्मीि में सरमस्त, दिलद़िगार अपनी माशू़िा दिल़िरेब क े शहर मीन सवाि क चला। मगर ज् -ज् ों मोंदजलें तय ह ती जाती थीों उसका दिल बैठ जाता था दक कहीों उस चीज़ की, दजसे मैं िुदनया की सबसे बेश़िीमत चीज़ समझता हँ, दिल़िरेब की आँख ों में कद्र न हुई त मैं फाँसी पर चढा दिया जाऊ ँ गा और इस िुदनया से नामुराि जाऊ ँ गा। लेदकन ज ह स ह , अब त दकस्मत-आज़माई है। आदख़रकार पहाड़ और िररया तय करते शहर मीन सवाि में आ पहुँचा और दिल़िरे ब की ड्य ढी पर जाकर दवनती की दक थकान से टू टा हुआ दिलद़िगार खुिा क े ़िज़ल से हुक्म की तामील करक े आया है, और आपक े ़ििम चूमना चाहता है। दिल़िरेब ने ़िौरन अपने सामने बुला भेजा और एक सुनहरे परिे की ओट से ़िरमाइश की दक वह अनम ल चीज़ पेश कर । दिलद़िगार ने आशा और भय की एक दवदचत्र मन:ल्कथथदत में वह बूँि पेश की और उसकी सारी क ै द़ियत बहुत पुरअसर लफज़ ों में बयान की। दिल़िरेब ने पूरी कहानी बहुत ग़ौर से सुनी और वह भेंट हाथ में लेकर ज़रा िेर तक ग़ौर करने क े बाि ब ली-दिलद़िगार, बेशक तूने िुदनया की एक बेश़िीमत चीज़ िूँढ दनकाली, तेरी दहम्मत और तेरी सूझबूझ की िाि िेती हँ! मगर यह िुदनया की सबसे बेश़िीमत चीज़ नहीों, इसदलए तू यहाँ से जा और दफर क दशश कर, शायि अब की तेरे हाथ वह म ती लगे और तेरी द़िस्मत में मेरी गुलामी दलखी ह । जैसा दक मैंने पहले ही बतला दिया था मैं तुझे फाँसी पर चढवा सकती हँ मगर मैं तेरी जाँबख्शी करती हँ इसदलए दक तुझमें वह गुण मौजूि हैं, ज मैं अपने प्रेमी में िेखना चाहती हँ और मुझे य़िीन है दक तू जरर कभी-न-कभी कामयाब ह गा। नाकाम और नामुराि दिलद़िगार इस माशू़िाना इनायत से ज़रा दिलेर ह कर ब ला-ऐ दिल की रानी, बड़ी मुद्दत क े बाि तेरी ड्य ढी पर सजिा करना नसीब ह ता है। दफर खुिा जाने ऐसे दिन कब आएँ गे, क्या तू अपने जान िेने वाले आदश़ि क े बुरे हाल पर तरस न खाएगी और क्या अपने रप की एक झलक दिखाकर इस जलते हुए दिलद़िगार क आने वाली सल्कख़्तय ों क े झेलने की ता़ित न िेगी? तेरी एक मस्त दनगाह क े नशे से चूर ह कर मैं वह कर सकता हँ ज आज तक दकसी से न बन पड़ा ह । दिल़िरेब आदश़ि की यह चाव-भरी बातें सुनकर गुस्सा ह गयी और हुक्म दिया दक इस िीवाने क खड़े-खड़े िरबार से दनकाल ि । च बिार ने ़िौरन ग़रीब दिलद़िगार क धक्क े िेकर यार क े क ू चे से बाहर दनकाल दिया।
  • 3. क ु छ िेर तक त दिलद़िगार अपनी दनष्ठु र प्रेदमका की इस कठ रता पर आँसू बहाता रहा, और स चने लगा दक कहाँ जाऊ ँ । मुद्दत ों रास्ते नापने और जोंगल ों में भटकने क े बाि आँसू की यह बूँि दमली थी, अब ऐसी कौन- सी चीज है दजसकी ़िीमत इस आबिार म ती से ज्ािा ह । हज़रते ल्कखज्र! तुमने दसकन्दर क आबेहयात क े क ु एँ का रास्ता दिखाया था, क्या मेरी बाँह न पकड़ गे? दसकन्दर सारी िुदनया का मादलक था। मैं त एक बेघरबार मुसाद़िर हँ। तुमने दकतनी ही ि ू बती दकल्कियाँ दकनारे लगायी हैं, मुझ ग़रीब का बेड़ा भी पार कर । ऐ आलीमु़िाम दजबरील! क ु छ तुम्ही इस नीमजान, िुखी आदश़ि पर तरस खाओ। तुम खुिा क े एक ख़ास िरबारी ह , क्या मेरी मुल्किल आसान न कर गे! ग़रज़ यह दक दिलद़िगार ने बहुत ़िररयाि मचायी मगर उसका हाथ पकिऩे क े दलए क ई सामने न आया। आदख़र दनराश ह कर वह पागल ों की तरह िुबारा एक तऱि क चल खड़ा हुआ। दिलद़िगार ने पूरब से पल्किम तक और उत्तर से िल्किन तक दकतने ही जोंगल ों और वीरान ों की ख़ाक छानी, कभी बद़ि य स्तानी च दटय ों पर स या, कभी िरावनी घादटय ों में भटकता दफरा मगर दजस चीज़ की धुन थी वह न दमली, यहाँ तक दक उसका शरीर हदिय ों का एक िाँचा रह गया। एक र ज वह शाम क े वक्त दकसी निी क े दकनारे खस्ताहाल पड़ा हुआ था। बेखुिी क े नशे से चौोंका त क्या िेखता है दक चन्दन की एक दचता बनी हुई है और उस पर एक युवती सुहाग क े ज ड़े पहने स लह ों दसोंगार दकये बैठी हुई है। उसकी जाँघ पर उसक े प्यारे पदत का सर है। हज़ार ों आिमी ग ल बाँधे खड़े हैं और फ ू ल ों की बरखा कर रहे हैं। यकायक दचता में से खुि-ब-खुि एक लपट उठी। सती का चेहरा उस वक्त एक पदवत्र भाव से आल दकत ह रहा था। दचता की पदवत्र लपटें उसक े गले से दलपट गयीों और िम-क े -िम में वह फ ू ल- सा शरीर राख का िेर ह गया। प्रेदमका ने अपने क प्रेमी पर न्य छावर कर दिया और ि प्रेदमय ों क े सच्चे, पदवत्र, अमर प्रेम की अल्किम लीला आँख से ओझल ह गयी। जब सब ल ग अपने घर ों क लौटे त दिलद़िगार चुपक े से उठा और अपने चाक-िामन क ु रते में यह राख का िेर समेट दलया और इस मुट्ठी भर राख क िुदनया की सबसे अनम ल चीज़ समझता हुआ, सफलता क े नशे में चूर, यार क े क ू चे की तरफ चला। अबकी ज् ों- ज् ों वह अपनी मोंदजल क े ़िरीब आता था, उसकी दहम्मतें बढती जाती थीों। क ई उसक े दिल में बैठा हुआ कह रहा था-अबकी तेरी जीत है और इस ख़याल ने उसक े दिल क ज -ज सपने दिखाए उनकी चचाय व्यथय है। आदख़कार वह शहर मीन सवाि में िादख़ल हुआ और दिल़िरेब की ऊ ँ ची ड्य ढी पर जाकर ख़बर िी दक दिलद़िगार सुख़य-र ह कर लौटा है और हुजूर क े सामने आना चाहता है। दिल़िरेब ने जाँबाज़ आदश़ि क ़िौरन िरबार में बुलाया और उस चीज क े दलए, ज िुदनया की सबसे बेश़िीमत चीज़ थी, हाथ फ ै ला दिया। दिलद़िगार ने दहम्मत करक े उसकी चाँिी जैसी कलाई क चूम दलया और मुठ्ठी भर राख क उसकी हथेली में रखकर सारी क ै द़ियत दिल क दपघला िेने वाले लफ़ज ों में कह सुनायी और सुन्दर प्रेदमका क े ह ठ ों से अपनी द़िस्मत का मुबारक ़ि ै सला सुनने क े दलए इिज़ार करने लगा। दिल़िरेब ने उस मुठ्ठी भर राख क आँख ों से लगा दलया और क ु छ िेर तक दवचार ों क े सागर में िू बे रहने क े बाि ब ली-ऐ जान दनछावर करने वाले आदश़ि दिलद़िगार! बेशक यह राख ज तू लाया है, दजसमें ल हे क स ना कर िेने की दस़ित है, िुदनया की बहुत बेश़िीमत चीज़ है और मैं सच्चे दिल से तेरी एहसानमन्द हँ दक तूने ऐसी अनम ल भेंट मुझे िी। मगर िुदनया में इससे भी ज्ािा अनम ल क ई चीज़ है, जा उसे तलाश कर और तब मेरे पास आ। मैं तहेदिल से िुआ करती हँ दक खुिा तुझे कामयाब करे । यह कहकर वह सुनहरे परिे से बाहर आयी और माशू़िाना अिा से अपने रप का जलवा दिखाकर दफर नजर ों से ओझल ह गयी। एक दबजली थी दक कौोंधी और दफर बािल ों क े परिे में दछप गयी। अभी दिलद़िगार क े ह श-हवास दठकाने पर न आने पाये थे दक च बिार ने मुलायदमयत से उसका हाथ पकि़िर यार क े क ू चे से उसक दनकाल दिया और दफर तीसरी बार वह प्रेम का पुजारी दनराशा क े अथाह समुन्दर में ग ता खाने लगा।
  • 4. दिलद़िगार का दहयाव छ ू ट गया। उसे य़िीन ह गया दक मैं िुदनया में इसी तरह नाशाि और नामुराि मर जाने क े दलए पैिा दकया गया था और अब इसक े दसवा और क ई चारा नहीों दक दकसी पहाड़ पर चि़िर नीचे क ू ि पड़ूँ, तादक माशू़ि क े जुल् ों की ़िररयाि करने क े दलए एक हिी भी बा़िी न रहे। वह िीवाने की तरह उठा और दगरता-पड़ता एक गगनचुम्बी पहाड़ की च टी पर जा पहुँचा। दकसी और समय वह ऐसे ऊ ँ चे पहाड़ पर चिऩे का साहस न कर सकता था मगर इस वक़्त जान िेने क े ज श में उसे वह पहाड़ एक मामूली टेकरी से ज्ािा ऊ ँ चा न नजर आया। ़िरीब था दक वह नीचे क ू ि पड़े दक हरे -हरे कपड़े पहने हुए और हरा अमामा बाँधे एक बुजुगय एक हाथ में तसबीह और िू सरे हाथ में लाठी दलये बरामि हुए और दहम्मत बढाने वाले स्वर में ब ले-दिलद़िगार, नािान दिलद़िगार, यह क्या बुज़दिल ों जैसी हरकत है! तू मुहब्बत का िावा करता है और तुझे इतनी भी खबर नहीों दक मजबूत इरािा मुहब्बत क े रास्ते की पहली मोंदज़ल है? मिय बन और य ों दहम्मत न हार। पूरब की तऱि एक िेश है दजसका नाम दहन्द स्तान है, वहाँ जा और तेरी आरजू पूरी ह गी। यह कहकर हज़रते दख़ज्र ग़ायब ह गये। दिलद़िगार ने शुदिये की नमाज अिा की और ताज़ा हौसले, ताज़ा ज श और अलौदकक सहायता का सहारा पाकर खुश-खुश पहाड़ से उतरा और दहन्द स्तान की तरफ चल पड़ा। मुद्दत ों तक काँट ों से भरे हुए जोंगल ों, आग बरसाने वाले रेदगस्तान ों, कदठन घादटय ों और अलोंघ्य पवयत ों क तय करने क े बाि दिलद़िगार दहन्द की पाक सरज़मीन में िाल्कखल हुआ और एक ठण्डे पानी क े स ते में स़िर की तकलीफ ें ध कर थकान क े मारे निी क े दकनारे लेट गया। शाम ह ते-ह ते वह एक चदटयल मैिान में पहुँचा जहाँ बेशुमार अधमरी और बेजान लाशें दबना क़िन क े पड़ी हुई थीों। चील-कौए और वहशी िररन्दे मरे पड़े हुए थे और सारा मैिान खून से लाल ह रहा था। यह िरावना दृश्य िेखते ही दिलद़िगार का जी िहल गया। या खुिा, दकस मुसीबत में जान फ ँ सी, मरने वाल ों का कराहना, दससकना और एदिय़ाँ रगि़िर जान िेना, िररन्द ों का हदिय ों क न चना और ग ि क े ल थड़ ों क लेकर भागना, ऐसा हौलनाक सीन दिलद़िगार ने कभी न िेखा था। यकायक उसे ख्याल आया, यह लड़ाई का मैिान है और यह लाशें सूरमा दसपादहय ों की हैं। इतने में ़िरीब से कराहने की आवाज़ आयी। दिलद़िगार उस तऱि दफरा त िेखा दक एक लम्बा-तड़ोंगा आिमी, दजसका मिायना चेहरा जान दनकालने की कमज़ री से पीला ह गया है, ज़मीन पर सर झुकाये पड़ा हुआ है। सीने से खून का फौव्वारा जारी है, मगर आबिार तलवार की मूठ पोंजे से अलग नहीोंहुई। दिलद़िगार ने एक चीथड़ा लेकर घाव क े मुँह पर रख दिया तादक खून रुक जाए और ब ला-ऐ जवाँमिय, तू कौन है? जवाँमिय ने यह सुनकर आँखें ख लीोंऔर वीर ों की तरह ब ला-क्या तू नहीोंजानता मैं कौन हँ, क्या तूने आज इस तलवार की काट नहीों िेखी? मैं अपनी माँ का बेटा और भारत का सपूत हँ। यह कहते-कहते उसकी त्य ररय ों पर बल पड़ गये। पीला चेहरा गुस्से से लाल ह गया और आबिार शमशीर दफर अपना जौहर दिखाने क े दलए चमक उठी। दिलद़िगार समझ गया दक यह इस वक्त मुझे िुश्मन समझ रहा है, नरमी से ब ला-ऐ जवाँमिय, मैं तेरा िुश्मन नहीों हँ। अपने वतन से दनकला हुआ एक ग़रीब मुसाद़िर हँ। इधर भूलता-भटकता आ दनकला। बराय मेहरबानी मुझसे यहाँ की क ु ल क ै द़ियत बयान कर। यह सुनते ही घायल दसपाही बहुत मीठे स्वर में ब ला-अगर तू मुसाद़िर है त आ मेरे खून से तर पहलू में बैठ जा क्य ोंदक यही ि अोंगुल ज़मीन है ज मेरे पास बा़िी रह गयी है और ज दसवाय मौत क े क ई नहीों छीन सकता। अ़िस स है दक तू यहाँ ऐसे वक़्त में आया जब हम तेरा आदतथ्य-सत्कार करने क े य ग्य नहीों। हमारे बाप-िािा का िेश आज हमारे हाथ से दनकल गया और इस वक्त हम बेवतन हैं। मगर (पहलू बिलकर) हमने हमलावर िुश्मन क बता दिया दक राजपूत अपने िेश क े दलए क ै सी बहािुरी से जान िेता है। यह आस-पास ज लाशें तू िेख रहा है, यह उन ल ग ों की है, ज इस तलवार क े घाट उतरे हैं। (मुस्कराकर) और ग या दक मैं
  • 5. बेवतन हँ, मगर ग़नीमत है दक िुश्मन की ज़मीन पर मर रहा हँ। (सीने क े घाव से चीथड़ा दनकालकर) क्या तूने यह मरहम रख दिया? खून दनकलने िे, इसे र कने से क्या ़िायिा? क्या मैं अपने ही िेश में गुलामी करने क े दलए दज़न्दा रहँ? नहीों, ऐसी दज़न्दगी से मर जाना अिा। इससे अिी मौत मुमदकन नहीों। जवाँमिय की आवाज़ मल्किम ह गयी, अोंग िीले पड़ गये, खून इतना ज्ािा बहा दक खुि-ब-खुि बन्द ह गया, रह-रहकर एकाध बूँि टपक पड़ता था। आदख़रकार सारा शरीर बेिम ह गया, दिल की हरकत बन्द ह गयी और आँखें मुँि गयीों। दिलद़िगार ने समझा अब काम तमाम ह गया दक मरने वाले ने धीमे से कहा-भारतमाता की जय! और उसक े सीने से खून का आदख़री ़ितरा दनकल पड़ा। एक सच्चे िेशप्रेमी और िेशभक्त ने िेशभल्कक्त का ह़ि अिा कर दिया। दिलद़िगार पर इस दृश्य का बहुत गहरा असर पड़ा और उसक े दिल ने कहा, बेशक िुदनया में खून क े इस ़ितरे से ज़्यािा अनम ल चीज क ई नहीोंह सकती। उसने ़िौरन उस खून की बूँि क दजसक े आगे यमन का लाल भी हेच है, हाथ में ले दलया और इस दिलेर राजपूत की बहािुरी पर हैरत करता हुआ अपने वतन की तऱि रवाना हुआ और सल्कख्तयाँ झेलता आदख़रकार बहुत दिन ों क े बाि रप की रानी मलका दिल़िरेब की ड्य ढी पर जा पहुँचा और पैग़ाम दिया दक दिलद़िगार सुख़यर और कामयाब ह कर लौटा है और िरबार में हादज़र ह ना चाहता है। दिल़िरेब ने उसे ़िौरन हादज़र ह ने का हुक्म दिया। खुि हस्बे मामूल सुनहरे परिे की ओट में बैठी और ब ली-दिलद़िगार, अबकी तू बहुत दिन ों क े बाि वापस आया है। ला, िुदनया की सबसे बेश़िीमत चीज कहाँ है? दिलद़िगार ने मेंहिी-रची हथेदलय ों क चूमते हुए खून का वह कतरा उस पर रख दिया और उसकी पूरी क ै द़ियत पुरज श लहजे में कह सुनायी। वह खाम श भी न ह ने पाया था दक यकायक वह सुनहरा परिा हट गया और दिलद़िगार क े सामने हुस्न का एक िरबार सजा हुआ नज़र आया दजसकी एक-एक नाज़नीन जुलेखा से बि़िर थी। दिल़िरेब बड़ी शान क े साथ सुनहरी मसनि पर सुश दभत ह रही थी। दिलद़िगार हुस्न का यह दतलस्म िेखकर अचम्भे में पड़ गया और दचत्रदलल्कखत-सा खड़ा रहा दक दिल़िरेब मसनि से उठी और कई ़ििम आगे बि़िर उससे दलपट गयी। गानेवादलय ों ने खुशी क े गाने शुर दकये, िरबाररय ों ने दिलद़िगार क नज़रें भेंट कीों और चाँि-सूरज क बड़ी इज्जत क े साथ मसनि पर बैठा दिया। जब वह लुभावना गीत बन्द हुआ त दिल़िरेब खड़ी ह गयी और हाथ ज ि़िर दिलद़िगार से ब ली-ऐ जाँदनसार आदश़ि दिलद़िगार! मेरी िुआएँ बर आयीों और खुिा ने मेरी सुन ली और तुझे कामयाब व सुख़यर दकया। आज से तू मेरा मादलक है और मैं तेरी लौोंिी! यह कहकर उसने एक रत्नजदटत मोंजूषा मँगायी और उसमें से एक तख्ती दनकाली दजस पर सुनहरे अक्षर ों में दलखा हुआ था- ‘खून का वह आदख़री ़ितरा ज वतन की दह़िाजत में दगरे िुदनया की सबसे अनम ल चीज़ है।’