शनि पीड़ा या कुण्डली में शनि की महादशा, साढ़े साती या ढैय्या में शनि के अशुभ प्रभावों से बचाव के लिए शनि व्रत रखने का भी बहुत महत्व बताया गया है। चूंकि हर धार्मिक कर्म का शुभ फल तभी मिलता है, जब उसका पालन विधिवत किया जाए। इसी कड़ी में जानिए शनि भक्ति के लिए स्नान, पूजा, दान और आहार कैसा हो ?
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शनि व्रत और पूजन विधि
1. शनि व्रत और पूजि विधि
शनि पीड़ा य़ा कु ण्डली में शनि की मह़ादश़ा, स़ाढ़े स़ाती य़ा ढैय्य़ा में शनि क़े अशुभ
प्रभ़ावों स़े बच़ाव क़े ललए शनि व्रत रखि़े क़ा भी बहुत महत्व बत़ाय़ा गय़ा है। चूंकक
हर ध़ालमिक कमि क़ा शुभ फल तभी लमलत़ा है, जब उसक़ा प़ालि ववधधवत ककय़ा ज़ाए।
इसी कडी में ज़ानिए शनि भक्तत क़े ललए स्ि़ाि, पज़ा, द़ाि और आह़ार कै स़ा हो ?
स्ि़ाि -
शनि उप़ासि़ा क़े ललए सब़ेऱे शरीर पर हल्क़ा त़ेल लग़ाएूं। ब़ाद में शुद्ध जल में पववत्र
िदी क़ा जल, क़ाल़े नतल और सौंफ लमल़ाकर स्ि़ाि करें।
शनि पज़ा -
शनिद़ेव को गूंग़ाजल स़े स्ि़ाि कऱाएूं। नतल य़ा सरसों क़ा त़ेल, क़ाल़े नतल, क़ाली उडद,
क़ाल़ा वस्त्र, क़ाल़े य़ा िील़े फल क़े स़ाथ त़ेल स़े बि़े व्यूंजि क़ा िैव़ेद्य चढ़ाएूं। ‘ऊँ शूं
शनिश्चऱाय िम: इस मूंत्र क़ा कम स़े कम 108 ब़ार जप करें।
द़ाि – शनि व्रत में शनि की पज़ा क़े स़ाथ द़ाि भी जरूरी है। शनि क़े कोप की श़ाूंनत
क़े ललए श़ास्त्रों में बत़ाई गई शनि की इि वस्तुओूं क़ा द़ाि करें। उडद, त़ेल, नतल,
िीलम रत्ि, क़ाली ग़ाय, भैंस, क़ाल़ा कम्बल य़ा कपड़ा, लोह़ा य़ा इसस़े बिी वस्तुएूं और
दक्षिण़ा ककसी ब्ऱाह्मण को द़ाि करि़ा च़ाहहए।
ख़ाि-प़ाि – शनि की अिुकलत़ा क़े ललए रख़े गए व्रत में यथ़ासूंभव उपव़ास रखें य़ा
एक समय भोजि क़ा सूंकल्प लें। इस हदि शुद्ध और पववत्र ववच़ार और व्यवह़ार
बहुत जरूरी है। आह़ार में दध, लस्सी और फलों क़ा रस ल़ेवें। अगर व्रत ि रख सकें
तो क़ाल़े उडद की खखचडी में क़ाल़ा िमक लमल़ाकर य़ा क़ाल़े उडद क़ा हलव़ा ख़ा
सकत़े हैं।