1. ऊर्ध्व मूलं अध: शाखा
खखड़की से दिखता है प्रततदिन पेड़ एक ्ट का
िेखती हूूँ मैं उसे (प्रततदिन) थोड़ी िेर नज़र अटकाकर
पत्तों की घनी हररयाली, खूब चटका
बरबस खींच लेता है खगों के मनका
आकर्वण, भा् भर िेता है उप्न का !
अचानक दिखा पल्ल्ों के बीच कु छ लघु गोल लाल
शशशु कृ ष्ण याि आया तत्काल
्णव उसका सिा से सुना था मेघ-नील
मन से पूछा “क्या यही प्रकृ तत की चाल ?”
उत्तर आया “ न जानती ? ... ऊपर्ाले का खेल? “
उन छोटे लाल गोल फलों मे तनदहत है जी्ों की मूल
बबन बीज कै से उगे नए व्टप ज़रा सोच
सब धमव िोनों हाथ उठा ऊपर की ओर
प्रभु के अस्ततत्् का करते हैं िा्ा बोल
मतलब यह हुआ कक उसका बनाया लोक
नीचे है शाखा बन, सृजन कताव है ऊपर बन
मूल --- अब समझ मे आया !
क्या है इसका सही तात्पयव |
धन्य बरगि स्जसने मुझे सुझाया सत्य
्ह करे त्ीकार शत-शत प्रणाम मेरे !