कबॶरēसाखॶDr A C V RAMAKUMAR CEO of Online Learning Platform www.thehindiacademy.comकबीरदास
जन्म : 1398, लहरतारा ताल, काशी
पिता का नाम : नीरू
माता का नाम : नीमा
पत्नी का नाम : लोई
बच्चें : कमाल (पुत्र), कमाली (पुत्री)
मुख्य रचनाएँ : साखी, सबद, रमैनी
मृत्यु : 1518, मगहर, उत्तर प्रदेश
ऐसी बाणी बोलिए, मन का आपा खोइ।
अपना तन सीतल करै, औरन कौ सुख होइ॥
आत्मत्राण - रवींद्रनाथ ठाकुरDr A C V RAMAKUMAR CEO of Online Learning Platform www.thehindiacademy.comरवींद्रनाथ ठाकुर की प्रस्तुत कविता का बंगला से हिन्दी अनुवाद श्रद्धेय आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी जी ने किया है। द्विवेदी जी का हिन्दी साहित्य को समृद्ध करने मे अपूर्व योगदान है। यह अनुवाद बताता है कि अनुवाद कैसे मूल रचना की ‘आत्मा’ को अक्षुण्ण बनाए रखने में सक्षम है।
कर चले हम फ़िदा - कैफ़ी आज़मीDr A C V RAMAKUMAR CEO of Online Learning Platform www.thehindiacademy.comप्रस्तुत पाठ जो युद्ध की पृष्ठभूमि पर बनी फ़िल्म ‘हकीकत’ के लिए लिखा गया था, ऐसे ही सैनिकों के हृदय की आवाज बयान करता है, जिन्हें अपने किए–धरे पर नाज है। इसी के साथ उन्हें अपने देशवासियों से कुछ अपेक्षाएँ भी हैं। चूँकि जिनसे उन्हें ये अ्पेक्षाएँ हैं वे देश वासी और कोई नहीं, हम और आप ही हैं, इसलिए आइए, इसे पढ़कर अपने आप से पूछें कि हम उनकी अपेक्षाएँ पूरी कर रहे हैं या नहीं?
पर्वत प्रदेश में पावस - सुमित्रानंदन पंतDr A C V RAMAKUMAR CEO of Online Learning Platform www.thehindiacademy.comपर्वत प्रदेश में पावस - सुमित्रानंदन पंत
पावस ऋतु थी, पर्वत प्रदेश,
पल-पल परिवर्तित प्रकृति-वेश।
मेखलाकार पर्वत अपार
अपने सहस्र दृग-सुमन फाड़,
अवलोक रहा है बार-बार
नीचे जल में निज महाकार,
जिसके चरणों में पला ताल
दर्पण-सा फैला है विशाल!
गिरि का गौरव गाकर झर-झर
मद में नस-नस उत्तेजित कर
मोती की लड़ियों-से सुंदर
झरते हैं झाग भरे निर्झर!
गिरिवर के उर से उठ-उठ कर
उच्चाकांक्षाओं से तरुवर
हैं झाँक रहे नीरव नभ पर
अनिमेष, अटल, कुछ चिंतापर।
उड़ गया, अचानक लो, भूधर
फड़का अपार पारद के पर!
रव-शेष रह गए हैं निर्झर!
है टूट पड़ा भू पर अंबर!
धँस गए धरा में सभय शाल!
उठ रहा धुआँ, जल गया ताल!
यों जलद-यान में विचर-विचर
था इंद्र खेलता इंद्रजाल।
प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानन्दन पन्त Dr A C V RAMAKUMAR CEO of Online Learning Platform www.thehindiacademy.comप्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानन्दन पन्त
छायावादी कवियों में सुमित्रानन्दन पन्त एक मात्र ऐसे कवि है, जिन्हें प्रकृति के सुकुमार कवि' के रुप में ख्याति प्राप्त है, प्रकृति पन्त जी के काव्य की मूल प्रेरक चेतना रही है, जैसा कि उसने स्वीकार किया है - “कविता करने की प्रेरणा मुझे सब से पहले प्रकृति निरीक्षण से मिली है, प्रकृति सौंन्दर्य में रमा कवि नारी सौंदर्य की भी उपेक्षा कर देता है -
"छोड द्रुमों की मृद छाया,
तोड प्रकृति की भी माया
बाले तेरे बालजाल में -
कैसे उलझा दूँ लोचन
भूल अभी से
इस जग को।"
पन्तजी के काव्य में प्रकृति परंपरागत सभी काव्य रूपों में विद्यमान है। आलम्बन के रुप में प्रकृति चित्रण में उनकी काव्य प्रतिभा प्रकृति के मानवीय रुप में लोचन चित्रण मिलती है। इस दृष्टि से "नौका विहार और परिवर्तन” कविताएँ उल्लेखनीय है -
शांत, स्निग्ध, ज्योत्सना उज्ज्वल।
अपलक, अनन्त, नीरव भूतल!
शैकत-शैया पर दुग्ध-धवल, तत्वंगी गंगा, ग्रीष्म विरल
लेटी है श्रान्त क्लान्त, निश्चल"|
पन्त जी ने गंगा नदी को मानवीय भाव, आकार, प्रकार, वेशभूषा, साज-सज्जा आदि ने सुसज्जित करके एक तापस-बाला के रूप में अत्यन्त सजीवता तथा सचेत के साथ अंकित किया है।
ग्रीष्म ऋतु की एक चाँदनी रात में कवि अपने मित्रों के साथ गंगा नदी के तट पर शार करने गये थे। कवि पन्त अपने मित्रों के साथ सैर करते समय कवि की भावनाएँ सहज ही फूट पड़ी। जिन्हें उन्होने थथाकत सुन्दर कविता के रूप में अंकित कर दिया है। जिस समय वे सैर कर रहे थे उस समय वातावरण बिलकुल शान्त एवं स्निग्ध था। राकेंदु की स्वच्छ किरणों की शीतलता वातावरण को आहलाद पूर्ण बना रही थी। अनंत आकाश निर्मल एवं स्वच्छ तथा मेघ रहित था। सारा भूतल निःशब्ध था। शौकत शैया पर धुंध-सी धवल, युवती-सी ग्रीष्म ताप से पीड़ित गंगा थककर निश्चिन्त होती है।
"अहेनिष्ठुर परिवर्तन?
तुम्हारा ही तांडव-नर्तन,
विश्व का करुण विवर्तन।
तुम्हारा ही नयनोन्मीलन,
निखिल उत्थान पतन"।
यह परिवर्तन बड़ा ही तिष्ठुर है। इसका तांडव सदैव होता रहता है और इसके नयनोन्मीलन से संसार में निरन्तर उत्थान एवं पतन होते रहते हैं। पन्त जी ने परिवर्तन कविता में संसार की अचरिता को देखकर पतन को निःश्वास भरते हुए दिखाया है, समुद्र की सिसकिया भरते और नक्षत्रों को सिहरते हुए बताया है –
“अचिरता देख जगती की आप,
शून्य भरता समीर निःश्वास,
डलता पातों पर चुपचाप,
ओस को आँसू नीलाकाश,
सिसक उठता समुद्र का मन,
सिहर उठते उडुगन”।
कविवर पन्त प्रकृति के सच्चे उपासक है। प्रकृति उसकी हास-रूदन की प्रेरक है, उद्धीपक है और उसकी अभिव्यक्ति का माध्यम भी है।
her identity and emancipationDr A C V RAMAKUMAR CEO of Online Learning Platform www.thehindiacademy.com“Her Identity and Emancipation” - Gelaxy International Inter disciplinary Research Journal
(ISSN 2347-6915) - GIIRJ, Vol.2(1), January, 2014, PP-142-143.
http://internationaljournals.co.in/pdf/GIIRJ/2014/January/11.pdf
निर्मलवर्मा का परिचय एवं साहित्य दृष्टिDr A C V RAMAKUMAR CEO of Online Learning Platform www.thehindiacademy.com“निर्मलवर्मा का परिचय एवं साहित्य दृष्टि” – Review of Research Journal, ISSN: 2249-894X, I.F: 5.7631(UIF) Volume 8, Issue 5, February 2019. (UGC Journal No. 48514)
http://oldror.lbp.world/UploadedData/7502.pdf
श्रीलालशुक्ल के उपन्यास में राजनीति स्थितिDr A C V RAMAKUMAR CEO of Online Learning Platform www.thehindiacademy.com“श्रीलालशुक्ल के उपन्यासों में चित्रित राजनीति स्थिति” - PRAMANA RESEARCH JOURNAL, ISSN: 2249-2976, Impact Factor - 6.2, Volume 9, Issue 3,P.No.717-727, March 2019. (UGC Journal No. 41241)
https://www.pramanaresearch.org/gallery/prj-p633.pdf
www.thehindiacademy.com
www.nrkacademy.com
www.sonuacademy.in
नागार्जुन की कविताओं में राजनीतिक व्यंग्यDr A C V RAMAKUMAR CEO of Online Learning Platform www.thehindiacademy.com “नागार्जुन की कविताओं में राजनीतिक व्यंग्य” – Review of Research Journal, ISSN: 2249-894X, I.F: 5.7631(UIF) Volume 8, Issue 7, APRIL 2019. (UGC Journal No. 48514)
http://oldror.lbp.world/UploadedData/8188.pdf
MYTH-2 (“मिथकीय विमर्श द्रौपदी के संदर्भ में”)Dr A C V RAMAKUMAR CEO of Online Learning Platform www.thehindiacademy.com“मिथकीय विमर्श द्रौपदी के संदर्भ में”
द्रौपदी के चरित्र को नये सिरे से प्रकाश में लाने का प्रथम प्रयास
स्त्रीवाद के नेपथ्य में द्रौपदी के चरित्र का संदर्भ
पतिदेवों के साथ स्वस्थ संबंध निर्वाह के संदर्भ में आंतरिक संघर्ष
बेटी, बहन, पत्नी, मों, श्रीकृष्ण की सहेली , राजनीतिज्ञा , महाराणी , विदूषणी और आदर्श गृहिणी के रूप में द्रौपदी का व्यक्तित्व गरिमा का अंकन :
गांधारी
कुंती
****
द्रौपदी उपन्यास में आचार्य लक्ष्मी प्रसाद ने द्रौपदी के पौराणिक मिथक के द्वारा नारी अस्मिता का प्रश्न उठाते हुए, समकालीन परिप्रेक्ष्य में नारी की वास्तविक स्थिति उद्घाटित करने का सार्थक प्रयास किया है। इनके उपन्यास में सामाजिक प्रतिबद्धता, संघर्षधर्मी जिजीविषा, कटुता, विसंगति समता तथा आर्थिक संकट से उत्पन्न जटिलताओं, समस्याओं के मार्मिक चित्रण के साथ ही वर्तमान परिवेश की ज़बरदस्त पकड़ महाभारतकालीन मिथक के माध्यम से मिलती है। यथा “पांच बलवान व श्रेष्ठ पुरुषों की पत्नी होकर भी तुमने अनेक कष्ट झेले। भरी सभा में एक क्षुद्र से अपमानित हुई। मेरे पुत्र भी तुम्हें बचा नहीं पाये।
माँ के आर्शीवाद से पांच पतियों में बंटी हुई द्रौपदी की मनःस्थिति वास्तव में किसी नारी की सहनशीलता की पराकाष्ठा ही तो है।
"द्रौपदी ने बलपूर्वक नकारते हुए सिर हिलाया। धर्मराज ने मृदुस्वर में पूछा – “क्या तुम ऐसा सोच रही हो - तुम्हें अर्जुन ने जीता लेकिन मुझे भी विवाह करना पड़ा”। "यह प्रश्न अब क्यों पूछते हैं? मेरा जो भी समझने पर भी अब क्या किया जा सकता? ...............
MYTH (मिथकीय विमर्श - अंधायुग : मिथकीय आलोचना - आधुनिक चिन्तनशील व्यक्ति के स...Dr A C V RAMAKUMAR CEO of Online Learning Platform www.thehindiacademy.comमिथकीय विमर्श
मिथक के प्रमुख तत्व
मिथक का स्वरूप
मिथक और साहित्य
साहित्य में मिथक प्रयोग
मिथकीय आलोचना दृष्टि की विशेषताएँ
मिथकीय आलोचना दृष्टि की सीमाएँ
अंधायुग : मिथकीय आलोचना
आधुनिक चिन्तनशील व्यक्ति के संघर्ष का प्रतीक–राम (संशय की एक रात)
संशय के विविध आयाम
पूर्व स्मृतियों के माध्यम से युद्ध पर विश्लेषण
युद्ध के दुष्परिणाम
मिथक का प्रयोग : आधुनिक संदर्भ में
** मिथक शब्द का उद्भव यूनानी शब्द मुथोस से माना जाता है जिसका अर्थ मौखिक कथा है। अपने विशिष्ट अर्थ में मिथ एक ऐसी कथा है, जिसके द्वारा कहने और सुनने वाले सृष्टि या ब्रह्मांड संबंधी किसी तथ्य को समझते हैं। मिथ शब्द के इस अर्थ के अंतर्गत यह बात स्वीकार कर ली गई है कि इस कथा का संबंध किसी अलौकिक शक्ति से अवश्य है।
** जार्ज व्हेले ने मिथक को मूलतः आदिम समूह या जाति से संबंधित तथा धार्मिक प्रवृति का माना है। उन्होंने उसे यथार्थ की अभिव्यक्ति को एक सशक्त माध्यम भी स्वीकार किया है। उनके अनुसार मिथक प्रतीकात्मक या कथात्मक संरचना में स्पष्टतः वास्तविकता की झलक दिखाता है। एक अन्य परिभाषा के अनुसार मिथक यथार्थता, वास्तविकता के कथन का दुर्बोध, अप्रत्यक्ष या अलंकृत माध्यम नहीं, अपितु यही एक मात्र माध्यम है।
** सी.जे.युंग ने मिथक के स्वरूप का स्पष्टीकरण करते हुए इसे व्यक्ति और समाज तथा परंपरा को एक सूत्र में बाँधने वाला बताया है। युंग ने सामूहिक अवचेतन की कल्पना करते हुए यह स्थापित किया है कि मनुष्य अपनी जाति की परंपराओं को अनजाने ही आत्मसात किए रहता है। यह उसका सामूहिक अवचेतना है।
भिन्नता में एकताDr A C V RAMAKUMAR CEO of Online Learning Platform www.thehindiacademy.comThis document is a song titled "Unity in Diversity" in Hindi that celebrates the unity between different languages and cultures in India. The song begins in Hindi but then incorporates verses in other Indian languages like Kashmiri, Punjabi, Sindhi, Urdu, Tamil, Kannada, Telugu, Malayalam, Bengali, Assamese, Oriya, Gujarati, Marathi and again concludes in Hindi, promoting oneness between the diverse languages and cultures of India.
कबॶरēसाखॶDr A C V RAMAKUMAR CEO of Online Learning Platform www.thehindiacademy.comकबीरदास
जन्म : 1398, लहरतारा ताल, काशी
पिता का नाम : नीरू
माता का नाम : नीमा
पत्नी का नाम : लोई
बच्चें : कमाल (पुत्र), कमाली (पुत्री)
मुख्य रचनाएँ : साखी, सबद, रमैनी
मृत्यु : 1518, मगहर, उत्तर प्रदेश
ऐसी बाणी बोलिए, मन का आपा खोइ।
अपना तन सीतल करै, औरन कौ सुख होइ॥
आत्मत्राण - रवींद्रनाथ ठाकुरDr A C V RAMAKUMAR CEO of Online Learning Platform www.thehindiacademy.comरवींद्रनाथ ठाकुर की प्रस्तुत कविता का बंगला से हिन्दी अनुवाद श्रद्धेय आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी जी ने किया है। द्विवेदी जी का हिन्दी साहित्य को समृद्ध करने मे अपूर्व योगदान है। यह अनुवाद बताता है कि अनुवाद कैसे मूल रचना की ‘आत्मा’ को अक्षुण्ण बनाए रखने में सक्षम है।
कर चले हम फ़िदा - कैफ़ी आज़मीDr A C V RAMAKUMAR CEO of Online Learning Platform www.thehindiacademy.comप्रस्तुत पाठ जो युद्ध की पृष्ठभूमि पर बनी फ़िल्म ‘हकीकत’ के लिए लिखा गया था, ऐसे ही सैनिकों के हृदय की आवाज बयान करता है, जिन्हें अपने किए–धरे पर नाज है। इसी के साथ उन्हें अपने देशवासियों से कुछ अपेक्षाएँ भी हैं। चूँकि जिनसे उन्हें ये अ्पेक्षाएँ हैं वे देश वासी और कोई नहीं, हम और आप ही हैं, इसलिए आइए, इसे पढ़कर अपने आप से पूछें कि हम उनकी अपेक्षाएँ पूरी कर रहे हैं या नहीं?
पर्वत प्रदेश में पावस - सुमित्रानंदन पंतDr A C V RAMAKUMAR CEO of Online Learning Platform www.thehindiacademy.comपर्वत प्रदेश में पावस - सुमित्रानंदन पंत
पावस ऋतु थी, पर्वत प्रदेश,
पल-पल परिवर्तित प्रकृति-वेश।
मेखलाकार पर्वत अपार
अपने सहस्र दृग-सुमन फाड़,
अवलोक रहा है बार-बार
नीचे जल में निज महाकार,
जिसके चरणों में पला ताल
दर्पण-सा फैला है विशाल!
गिरि का गौरव गाकर झर-झर
मद में नस-नस उत्तेजित कर
मोती की लड़ियों-से सुंदर
झरते हैं झाग भरे निर्झर!
गिरिवर के उर से उठ-उठ कर
उच्चाकांक्षाओं से तरुवर
हैं झाँक रहे नीरव नभ पर
अनिमेष, अटल, कुछ चिंतापर।
उड़ गया, अचानक लो, भूधर
फड़का अपार पारद के पर!
रव-शेष रह गए हैं निर्झर!
है टूट पड़ा भू पर अंबर!
धँस गए धरा में सभय शाल!
उठ रहा धुआँ, जल गया ताल!
यों जलद-यान में विचर-विचर
था इंद्र खेलता इंद्रजाल।
प्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानन्दन पन्त Dr A C V RAMAKUMAR CEO of Online Learning Platform www.thehindiacademy.comप्रकृति के सुकुमार कवि सुमित्रानन्दन पन्त
छायावादी कवियों में सुमित्रानन्दन पन्त एक मात्र ऐसे कवि है, जिन्हें प्रकृति के सुकुमार कवि' के रुप में ख्याति प्राप्त है, प्रकृति पन्त जी के काव्य की मूल प्रेरक चेतना रही है, जैसा कि उसने स्वीकार किया है - “कविता करने की प्रेरणा मुझे सब से पहले प्रकृति निरीक्षण से मिली है, प्रकृति सौंन्दर्य में रमा कवि नारी सौंदर्य की भी उपेक्षा कर देता है -
"छोड द्रुमों की मृद छाया,
तोड प्रकृति की भी माया
बाले तेरे बालजाल में -
कैसे उलझा दूँ लोचन
भूल अभी से
इस जग को।"
पन्तजी के काव्य में प्रकृति परंपरागत सभी काव्य रूपों में विद्यमान है। आलम्बन के रुप में प्रकृति चित्रण में उनकी काव्य प्रतिभा प्रकृति के मानवीय रुप में लोचन चित्रण मिलती है। इस दृष्टि से "नौका विहार और परिवर्तन” कविताएँ उल्लेखनीय है -
शांत, स्निग्ध, ज्योत्सना उज्ज्वल।
अपलक, अनन्त, नीरव भूतल!
शैकत-शैया पर दुग्ध-धवल, तत्वंगी गंगा, ग्रीष्म विरल
लेटी है श्रान्त क्लान्त, निश्चल"|
पन्त जी ने गंगा नदी को मानवीय भाव, आकार, प्रकार, वेशभूषा, साज-सज्जा आदि ने सुसज्जित करके एक तापस-बाला के रूप में अत्यन्त सजीवता तथा सचेत के साथ अंकित किया है।
ग्रीष्म ऋतु की एक चाँदनी रात में कवि अपने मित्रों के साथ गंगा नदी के तट पर शार करने गये थे। कवि पन्त अपने मित्रों के साथ सैर करते समय कवि की भावनाएँ सहज ही फूट पड़ी। जिन्हें उन्होने थथाकत सुन्दर कविता के रूप में अंकित कर दिया है। जिस समय वे सैर कर रहे थे उस समय वातावरण बिलकुल शान्त एवं स्निग्ध था। राकेंदु की स्वच्छ किरणों की शीतलता वातावरण को आहलाद पूर्ण बना रही थी। अनंत आकाश निर्मल एवं स्वच्छ तथा मेघ रहित था। सारा भूतल निःशब्ध था। शौकत शैया पर धुंध-सी धवल, युवती-सी ग्रीष्म ताप से पीड़ित गंगा थककर निश्चिन्त होती है।
"अहेनिष्ठुर परिवर्तन?
तुम्हारा ही तांडव-नर्तन,
विश्व का करुण विवर्तन।
तुम्हारा ही नयनोन्मीलन,
निखिल उत्थान पतन"।
यह परिवर्तन बड़ा ही तिष्ठुर है। इसका तांडव सदैव होता रहता है और इसके नयनोन्मीलन से संसार में निरन्तर उत्थान एवं पतन होते रहते हैं। पन्त जी ने परिवर्तन कविता में संसार की अचरिता को देखकर पतन को निःश्वास भरते हुए दिखाया है, समुद्र की सिसकिया भरते और नक्षत्रों को सिहरते हुए बताया है –
“अचिरता देख जगती की आप,
शून्य भरता समीर निःश्वास,
डलता पातों पर चुपचाप,
ओस को आँसू नीलाकाश,
सिसक उठता समुद्र का मन,
सिहर उठते उडुगन”।
कविवर पन्त प्रकृति के सच्चे उपासक है। प्रकृति उसकी हास-रूदन की प्रेरक है, उद्धीपक है और उसकी अभिव्यक्ति का माध्यम भी है।
her identity and emancipationDr A C V RAMAKUMAR CEO of Online Learning Platform www.thehindiacademy.com“Her Identity and Emancipation” - Gelaxy International Inter disciplinary Research Journal
(ISSN 2347-6915) - GIIRJ, Vol.2(1), January, 2014, PP-142-143.
http://internationaljournals.co.in/pdf/GIIRJ/2014/January/11.pdf
निर्मलवर्मा का परिचय एवं साहित्य दृष्टिDr A C V RAMAKUMAR CEO of Online Learning Platform www.thehindiacademy.com“निर्मलवर्मा का परिचय एवं साहित्य दृष्टि” – Review of Research Journal, ISSN: 2249-894X, I.F: 5.7631(UIF) Volume 8, Issue 5, February 2019. (UGC Journal No. 48514)
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श्रीलालशुक्ल के उपन्यास में राजनीति स्थितिDr A C V RAMAKUMAR CEO of Online Learning Platform www.thehindiacademy.com“श्रीलालशुक्ल के उपन्यासों में चित्रित राजनीति स्थिति” - PRAMANA RESEARCH JOURNAL, ISSN: 2249-2976, Impact Factor - 6.2, Volume 9, Issue 3,P.No.717-727, March 2019. (UGC Journal No. 41241)
https://www.pramanaresearch.org/gallery/prj-p633.pdf
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नागार्जुन की कविताओं में राजनीतिक व्यंग्यDr A C V RAMAKUMAR CEO of Online Learning Platform www.thehindiacademy.com “नागार्जुन की कविताओं में राजनीतिक व्यंग्य” – Review of Research Journal, ISSN: 2249-894X, I.F: 5.7631(UIF) Volume 8, Issue 7, APRIL 2019. (UGC Journal No. 48514)
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MYTH-2 (“मिथकीय विमर्श द्रौपदी के संदर्भ में”)Dr A C V RAMAKUMAR CEO of Online Learning Platform www.thehindiacademy.com“मिथकीय विमर्श द्रौपदी के संदर्भ में”
द्रौपदी के चरित्र को नये सिरे से प्रकाश में लाने का प्रथम प्रयास
स्त्रीवाद के नेपथ्य में द्रौपदी के चरित्र का संदर्भ
पतिदेवों के साथ स्वस्थ संबंध निर्वाह के संदर्भ में आंतरिक संघर्ष
बेटी, बहन, पत्नी, मों, श्रीकृष्ण की सहेली , राजनीतिज्ञा , महाराणी , विदूषणी और आदर्श गृहिणी के रूप में द्रौपदी का व्यक्तित्व गरिमा का अंकन :
गांधारी
कुंती
****
द्रौपदी उपन्यास में आचार्य लक्ष्मी प्रसाद ने द्रौपदी के पौराणिक मिथक के द्वारा नारी अस्मिता का प्रश्न उठाते हुए, समकालीन परिप्रेक्ष्य में नारी की वास्तविक स्थिति उद्घाटित करने का सार्थक प्रयास किया है। इनके उपन्यास में सामाजिक प्रतिबद्धता, संघर्षधर्मी जिजीविषा, कटुता, विसंगति समता तथा आर्थिक संकट से उत्पन्न जटिलताओं, समस्याओं के मार्मिक चित्रण के साथ ही वर्तमान परिवेश की ज़बरदस्त पकड़ महाभारतकालीन मिथक के माध्यम से मिलती है। यथा “पांच बलवान व श्रेष्ठ पुरुषों की पत्नी होकर भी तुमने अनेक कष्ट झेले। भरी सभा में एक क्षुद्र से अपमानित हुई। मेरे पुत्र भी तुम्हें बचा नहीं पाये।
माँ के आर्शीवाद से पांच पतियों में बंटी हुई द्रौपदी की मनःस्थिति वास्तव में किसी नारी की सहनशीलता की पराकाष्ठा ही तो है।
"द्रौपदी ने बलपूर्वक नकारते हुए सिर हिलाया। धर्मराज ने मृदुस्वर में पूछा – “क्या तुम ऐसा सोच रही हो - तुम्हें अर्जुन ने जीता लेकिन मुझे भी विवाह करना पड़ा”। "यह प्रश्न अब क्यों पूछते हैं? मेरा जो भी समझने पर भी अब क्या किया जा सकता? ...............
MYTH (मिथकीय विमर्श - अंधायुग : मिथकीय आलोचना - आधुनिक चिन्तनशील व्यक्ति के स...Dr A C V RAMAKUMAR CEO of Online Learning Platform www.thehindiacademy.comमिथकीय विमर्श
मिथक के प्रमुख तत्व
मिथक का स्वरूप
मिथक और साहित्य
साहित्य में मिथक प्रयोग
मिथकीय आलोचना दृष्टि की विशेषताएँ
मिथकीय आलोचना दृष्टि की सीमाएँ
अंधायुग : मिथकीय आलोचना
आधुनिक चिन्तनशील व्यक्ति के संघर्ष का प्रतीक–राम (संशय की एक रात)
संशय के विविध आयाम
पूर्व स्मृतियों के माध्यम से युद्ध पर विश्लेषण
युद्ध के दुष्परिणाम
मिथक का प्रयोग : आधुनिक संदर्भ में
** मिथक शब्द का उद्भव यूनानी शब्द मुथोस से माना जाता है जिसका अर्थ मौखिक कथा है। अपने विशिष्ट अर्थ में मिथ एक ऐसी कथा है, जिसके द्वारा कहने और सुनने वाले सृष्टि या ब्रह्मांड संबंधी किसी तथ्य को समझते हैं। मिथ शब्द के इस अर्थ के अंतर्गत यह बात स्वीकार कर ली गई है कि इस कथा का संबंध किसी अलौकिक शक्ति से अवश्य है।
** जार्ज व्हेले ने मिथक को मूलतः आदिम समूह या जाति से संबंधित तथा धार्मिक प्रवृति का माना है। उन्होंने उसे यथार्थ की अभिव्यक्ति को एक सशक्त माध्यम भी स्वीकार किया है। उनके अनुसार मिथक प्रतीकात्मक या कथात्मक संरचना में स्पष्टतः वास्तविकता की झलक दिखाता है। एक अन्य परिभाषा के अनुसार मिथक यथार्थता, वास्तविकता के कथन का दुर्बोध, अप्रत्यक्ष या अलंकृत माध्यम नहीं, अपितु यही एक मात्र माध्यम है।
** सी.जे.युंग ने मिथक के स्वरूप का स्पष्टीकरण करते हुए इसे व्यक्ति और समाज तथा परंपरा को एक सूत्र में बाँधने वाला बताया है। युंग ने सामूहिक अवचेतन की कल्पना करते हुए यह स्थापित किया है कि मनुष्य अपनी जाति की परंपराओं को अनजाने ही आत्मसात किए रहता है। यह उसका सामूहिक अवचेतना है।
भिन्नता में एकताDr A C V RAMAKUMAR CEO of Online Learning Platform www.thehindiacademy.comThis document is a song titled "Unity in Diversity" in Hindi that celebrates the unity between different languages and cultures in India. The song begins in Hindi but then incorporates verses in other Indian languages like Kashmiri, Punjabi, Sindhi, Urdu, Tamil, Kannada, Telugu, Malayalam, Bengali, Assamese, Oriya, Gujarati, Marathi and again concludes in Hindi, promoting oneness between the diverse languages and cultures of India.
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IGNOU Important Question
Course Code: BHDLA135
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BHDLA136 Hindi Bhasha Lekhan kaushal Question PDFSONU HEETSONBHDLA136 Hindi Bhasha Lekhan kaushal IGNOU important questions solved assignment Free PDF Download.
हिंदी कविताएं | चिरैया से माँ तक: बचपन, प्रकृति और ममता की कविताएँDr. Mulla Adam Aliइस काव्य-संग्रह में पढ़ें भावों से भीगे मनमोहक चित्र — जहाँ गौरैया की चहचहाहट से लेकर माँ की ममता तक की संवेदनाएँ सजीव हो उठती हैं। डॉ. परशुराम शुक्ल, प्रभुदयाल श्रीवास्तव, त्रिलोक सिंह ठकुरेला, अशोक श्रीवास्तव "कुमुद", शिवचरण चौहान, डॉ. राकेश चक्र, रेखा शाह आरबी और मधु माहेश्वरी जैसे कवियों की रचनाएँ आपको बचपन की गलियों, ठंडी कुल्फियों, रंग-बिरंगी चिड़ियों और माँ की गोद तक की यात्रा कराती हैं — प्रकृति, स्मृतियों और जीवन के रंगों से भरपूर। डॉ. मुल्ला आदम अली हिंदी भाषा और साहित्यिक ब्लॉग, हिंदी कविताएं, कविता कोश, हिंदी कविता संग्रह, बाल कविताएं, बालगीत हिंदी, बच्चों की कविताएं, Kavita Kosh Hindi, Poetry Collection, Hindi Kavita Sangrah, Dr. Mulla Adam Ali Hindi Language and Literature Blog, Hindi Poems.
life skills , Types,nature, Concept of life skillsRajan Kumar Gupta /Life skills are abilities for adaptive and positive behavior that enable humans to deal effectively with the demands and challenges of life. This concept is also termed as psychosocial competency./ जीवन कौशल वे व्यावहारिक योग्यताएँ हैं जो व्यक्तियों को रोज़मर्रा की चुनौतियों का प्रबंधन करने और जीवन को प्रभावी ढंग से आगे बढ़ाने में मदद करती हैं । इनमें संचार, समस्या-समाधान, आलोचनात्मक सोच और भावनात्मक विनियमन सहित कई तरह के कौशल शामिल हैं। इन कौशलों में महारत हासिल करने से व्यक्तिगत और पेशेवर कल्याण पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है, जिससे व्यक्ति सूचित निर्णय ले सकता है, स्वस्थ संबंध बना सकता है और तनाव से निपट सकता है।
जीवन कौशल के उदाहरण:
संचार: विचारों को प्रभावी ढंग से व्यक्त करना, सक्रिय रूप से सुनना, और दूसरों के साथ तालमेल बनाना।
समस्या को सुलझाना: तार्किक तर्क और रचनात्मकता के माध्यम से समस्याओं की पहचान करना और उनका समाधान करना।
महत्वपूर्ण सोच: जानकारी का विश्लेषण करना, तर्कों का मूल्यांकन करना, और ठोस निर्णय लेना।
निर्णय लेना: उपलब्ध जानकारी और मूल्यों के आधार पर सूचित विकल्प बनाना।
भावनात्मक विनियमन: तनाव, क्रोध और चिंता सहित भावनाओं को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करना।
लचीलापन: परिवर्तन के अनुकूल ढलना और प्रतिकूल परिस्थितियों पर काबू पाना।
आत्म-जागरूकता: अपनी स्वयं की शक्तियों, कमजोरियों और प्रेरणाओं को समझना।
समानुभूति: दूसरों की भावनाओं को समझना और साझा करना।
टीमवर्क: सामान्य लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए दूसरों के साथ प्रभावी ढंग से सहयोग करना।
अनुकूलनशीलता: नई परिस्थितियों और चुनौतियों के साथ समायोजन करना।
समय प्रबंधन: समय सीमा को पूरा करने के लिए कार्यों को व्यवस्थित करना और प्राथमिकता देना।
तकनीकी कौशल: जीवन के विभिन्न पहलुओं में प्रौद्योगिकी का प्रभावी उपयोग करना।
जीवन कौशल का महत्व:
व्यक्तिगत कल्याण:
दैनिक जीवन में आगे बढ़ने, तनाव प्रबंधन और स्वस्थ संबंधों को बढ़ावा देने के लिए जीवन कौशल आवश्यक हैं।
कैरियर की सफलता:
कार्यस्थल पर संचार, समस्या समाधान और आलोचनात्मक सोच जैसे कई जीवन कौशलों को अत्यधिक महत्व दिया जाता है।
सामाजिक जिम्मेदारी:
जीवन कौशल व्यक्ति को समाज का प्रभावी और जिम्मेदार सदस्य बनने में योगदान देते हैं।
मानसिक स्वास्थ्य:
जीवन कौशल विकसित करने से व्यक्तियों को चुनौतियों से निपटने, लचीलापन विकसित करने तथा अपने समग्र मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद मिल सकती
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पी.एम.श्री विद्यालयों में अध्यनरत छात्र-छात्राओं की जनपद स्तरीय खेल-कूद एवं स...COLOURIMPRESSIONपी.एम.श्री विद्यालयों में
अध्यनरत छात्र-छात्राओं की
जनपद स्तरीय
खेल-कूद एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम
प्रतियोगिता---- बेसिक शिक्षा विभाग, बाँदा
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मदर तेरेसा
1. एक नाम है, जो शाति, करुणा, प्रेम व वात्सल्य का
पर्ाार् कहलािा है। ऐसी महान मािा का पूरा
नाम आग्नेस गोोंकशे बोजतशर्ु िेरेसा था। उनका
जन्म 26 अगस्त, 1910 और स्वगावास 5 तसिोंबर,
1997 में हुआ था। वैसे िो वे र्ुगोस्लातवर्ा मूल की
थीों, आगे चलकर सेवा की भावना में रि होकर
भारि की नागररकिा स्वीकार कर ली। प्रारोंभ में
उन्ोोंने अध्यापक क
े रूप में काम तकर्ा। तक
ों िु
उनका सपना क
ु छ और ही था। वे सुनावोों, ग़रीबोों
और रोतगर्ोों की सेवा करना चाहिी थीों। इसीतलए
सन् 1950 में कोलकािा में "तमशनरीज़ ऑफ
चाररटी" की स्थापना की। उनक
े द्वारा स्थातपि
सोंस्था ही 'तनमाल हृदर्''। उन्ोोंने अपना सारा
जीवन ग़रीब, अनाथ और बीमार लोगोों की सेवा
में लगा तदर्ा।
2. सन् 1970 िक वे ग़रीबोों और असहार्ोों क
े तलए
अपने मानवीर् कार्ों क
े तलए प्रतसद्ध हो गर्ीों।
सन 1979 में उन्ें नोबेल पुरस्कार, सन् 1980 में
भारि रत्न पुरस्कार से सम्मातनि तकर्ा गर्ा।
उन्ोोंने कथनी से कहीों करनी को अतिक महत्व
तदर्ा। इसीतलए वे हमेशा कहा करिी थी -
“प्राथाना करनेवाले होोंठोों से सहार्िा करने वाले
हाथ कहीों अच्छे हैं।” मािृमूतिा, करुणामर्ी मदर
िेरेसा ने अपने जीवन में र्ह सातबि कर तदखार्ा
है तक 'मानव सेवा मािव सेवा है।' परोपकार क
े
पथ पर चलने वालोों को ही वास्ततवक जीवन
तमलिा है। आज वे हमारे बीच नहीों रहीों, तक
ों िु
उनक
े महान तवचार, उत्क
ृ ष्ट कार्ा और श्रेष्ठ
परोपकारी गुण आज भी एक तदव्यज्योति क
े रूप
में हमें वास्ततवक जीवन तबिाने की राह तदखािे
हैं।